09 सितंबर, 2009

छुटपुट चुटकुले

राज जी (ताऊ से)- शादी में दूल्हे के साथ बाराती क्यों जाते हैं?
ताऊ - क्योंकि बड़े कहते हैं कि किसी की खुशी में जाओ या न जाओ पर मुसीबत में जरूर जाना चाहिए।


ताऊ (डॉक्टर से)- मुझे अजीब सी बीमारी हो गयी है.. जब मेरी बीवी (ताई ) बोलती है तो मुझे कुछ सुनाई नही देता..
डॉक्टर- ये बीमारी नही खुदा की नियामत है


ज्ञान जी ने आने वाले से पूछा, " क्या तुम्हें पता नही कि आज्ञा के बिना अन्दर आना मना है।"
आने वाला, "जनाब मैं आज्ञा लेने के लिए ही अन्दर आया हूं।"


यात्री (मुझसे )- तुमने मेरी जेब में हाथ क्यों डाला?
मैं - मुझे माचिस चाहिए थी। यात्री- तुम मुझसे मांग सकते थे।
मैं - मैं अजनबियों से बात नही करता


सुरेन्द्र जी को उनके दोस्त ने खाने पर बुलाया।
सुरेन्द्र जी जब दोस्त के घर गए तो घर पर ताला लगा था, और लिखा था मैंने तुमको बेवकूफ बनाया।
सुरेन्द्र जी ने होशियारी दिखायी और नीचे लिख दिया, मैं तो आया ही नही था।


सुरेन्द्र जी की पत्नी (सुरेन्द्र जी से)- तुम्हें मेरी कौन सी बात सबसे अच्छी लगती है, मेरी खूबसूरती या मेरी समझदारी।
सुरेन्द्र जी - मुझे तुम्हारी ये मजाक करने की आदत बहुत अच्छी लगती है


अध्यापिका - रामप्यारी ! तुम्हारा सारा होमवर्क गलत है।
आखिर इसका क्या कारण है??
रामप्यारी - जी, कारण तो ताऊ ही बता सकते है


अध्यापक ने रामप्यारी से कहा, मैने कल तुम्हें जो हिंन्दी मे पाठ पढाया था, उसे सुनाओ ।
रामप्यारी - टीचर जी , आता नही है। इस पर अध्यापक ने कहा, नही आता तो ऐसा करो जो आता है वही सुनाओ।
रामप्यारी बोली - मुझे तो गाना आता है वही सुना दूँ ?

(साभार जागरण)

02 सितंबर, 2009

जिंदगी एक उड़ान है


जिंदगी एक उड़ान है
सुख और दुःख इसमे एक समान है
लगता है देखकर दूसरों को उड़ना आसान है
पर आती है कितनी मुश्किलें हम तो अन्जान है
जिंदगी की इस दौड़ में हर कोई मेहमान है
पुरे कर लिए अपने सपने जिसने , वो ही महान है
कुछ ऐसे लोग भी है जो जिन्दगी से परेशान है
हार कभी न मानना, ये तो जिन्दगी का इम्तहान है
जिन्दगी दिखा रही है हर रोज खेल नए , हमें इसका गुमान है
कभी कुछ खो के , कभी कुछ पा के हम हैरान है
जो हार गया समय से पहले , तो ये जिन्दगी का अपमान है
मिली है बड़ी मुश्किलों से ये जिन्दगी , ये ऊपर वाले का अहसान है
गिर कर फिर सभलना ही जिन्दगी की पहचान है
जो दुसरो के लिए कुछ कर जाए , तो ये जिन्दगी की शान है
जिंदगी एक लम्बी उड़ान है
सुख और दुःख इसमे एक समान है

03 अगस्त, 2009

हँसते-मुस्कुराते

डाकू (ताऊ से)- सुन या तो तू अपनी जान देगा, या फिर वह सारा रुपया जो पोटली में दबाकर ले जा रहा है।

ताऊ (डाकू से)- नहीं जी, तुम मेरी जान ही ले लो, रुपया तो मैंने बुढ़ापे के लिए रख छोड़ा है।


ताऊ (भाटिया जी से)- मैं बचपन में बहुत ताकतवर था..

भाटिया जी (ताऊ से)- वो कैसे?

ताऊ - मां कहती है मैं जब रोता था तो सारा घर सिर पर उठा लेता था।


गरीब मरीज- डॉक्टर साहब मेरे पास पैसे नही हैं आप मेरा इलाज कर दें तो कभी आपके काम आऊंगा।

डॉक्टर- तुम काम क्या करते हो?

मरीज- जी कब्र खोदता हूं।


मैं (रामप्यारी से)- तुम बल्ब पर ताऊ का नाम क्यों लिख रहे हो?

रामप्यारी (मुझसे से)- मैं ताऊ का नाम रोशन करना चाहती हूं।


रामप्यारी बहुत देर से घर के बाहर खड़ी दरवाजे की घंटी बजाने की कोशिश कर रही थी तभी ज्ञान जी आये और बोले - क्या कर रही हो रामप्यारी ?

रामप्यारी - अंकल, ये घंटी बजाना चाहती हूं।

ज्ञान जी (घंटी बजाकर)- ये तो बज गयी अब क्या है।

रामप्यारी - अब भागो!


मैं (बॉस से)- सर मेरा वेतन बढ़ा दीजिये, अब मेरी शादी होने वाली है।

बॉस- कार्यालय के बाहर होने वाली दुर्घटनाओं के लिए ऑफिस जिम्मेदार नही है।

लेडी डॉक्टर (गुस्से से)- तुम रोज सुबह अस्पताल के बाहर खड़े होकर औरतों को क्यों घूरते हो?

मैं (डॉक्टर से)- मैडम, अस्पताल के बाहर ही तो लिखा है- औरतों को देखने का समय सुबह 9 बजे से 11 बजे तक।



पत्नी (सुरेन्द्र जी से )- रात को आप शराब पीकर गटर में गिर गए थे।

सुरेन्द्र जी (पत्नी से)- क्या बताऊं, सब गलत संगत का असर है, हम 4 दोस्त....1 बोतल, और वो तीनों कम्बख्त पीते नही।


27 जुलाई, 2009

चुनाव परिणाम

ग्राम प्रधान चुनाव के नतीजे आ गए थे , सुरेन्द्र जी बड़े परेशान से घर के आगे चारपाई डाल कर बैठे हुए थे . तभी उनके खेतों में काम करने वाला छोटे लाल आ और बोला "का बात है साहब बड़ा परेशान लागत हो ? ".

सुरेन्द्र जी बोले "चुनाव का नतीजा आ गया है बस उसे जान कर बड़ा दुखी हूँ "

छोटे लाल बोला "का भवा साहब, हम और हमरे घरवाली तो आपके ही वोट दिए रहे , लेकिन सुने हैं की जगदीश जीत गए हैं "

इतना सुनते ही सुरेन्द्र जी के चहरे का रंग बदल गया और वो बोले "का छोटेलाल, तू सही कह रहे हो की तू हमको वोट दिए हो "

छोटेलाल बोला "हाँ मालिक , हम और हमरे घरवाली आपही को वोट दिए हैं "

सुरेन्द्र जी ने दुबारा पूछा "सच कह रहे हो छोटेलाल या झूठ बोल रहे हो "

"नहीं सरकार हम सच बोल रहे हैं" छोटेलाल बोला .

सुरेन्द्र जी ने पास के पड़ा हुआ डंडा उठाया और लगे मारने छोटेलाल को तब तक और लोग आ गए और बोले "अरे सुरेन्द्र बाबु हार गए तो गरीब को मारोगे क्या "

सुरेन्द्र जी बोले "नहीं हम इसको इसलिए मार रहे हैं क्योंकि ये हमसे झूठ बोल रहा हैं "

लोगोने पूछा "अरे क्या झूठ बोल दिया इसने "

अभी थोडी देर पहले मतगणना केंद्र से आया और यहाँ बैठ कर सोच रहा था "मुझे केवल एक वोट मिला है, तो मेरे बीवी और बच्चोंने किसे वोट दिया है. तभी ये आ गया और बोलने लगा की "इसने और इसकी घरवाली ने मुझे वोट दिया हैं, बस इसी बात पर गुस्सा आ गया " .

20 अप्रैल, 2009

गजबे हो जायेगा

एक जजमान कथा सुन रहे थे . पंडित जी ने कथा शुरू होने के पहले ही जजमान को बता दिया था कि कथा के बीच में उठना मना है . जब पंडित जी को कथा बाचते बहुत समय हो गया तो जजमान ने पंडित जी से पूछा "महाराज अगर कथा के बीच में उठना चाहूँ तो क्या उठ सकता हूँ ? ".

पंडित जी बोले "नहीं , जजमान आप कथा के बीच से उठ कर कहीं नहीं जा सकते ".

जजमान बोले "पंडित जी , अगर कोई आवश्यक कार्य हो तो ?".

पंडित जी बोले "नहीं , जजमान अगर ऐसा करेगे तो कथा फलित नहीं होगी ".

जजमान बोले "पंडित जी , अगर लघुशंका जाना हो तो ?".

पंडित जी बोले "तो जजमान आप धीरे से उठ कर चले जाइये और हाथ-पैर धोके, थोड़ासा जल ऊपर छिड़क कर, वापस आके बैठ जाइये "।

जजमान बोले "महराज, अगर दीर्घ शंका जाना हो तो ? "

पंडित जी बोले "जजमान , तबतो गजबे हो जायेगा ".

जजमान बोले "महराज , गजबे करके तो बैठे हुए है , अब बताइए क्या करे ?"

18 अप्रैल, 2009

बाप बाप है

बेटा कितना भी बड़ा क्यों न हो जाये बाप से दो कदम पीछे ही रहता है । किसी ने मुझसे कहा की यदि ऐसा है तो जीतनी खोज आज तक हुई है वो खोजे उनके बाप ने क्यों नहीं की , नई दुनिया की खोज तो कोलम्बस के बाप को कर लेनी चाहिए थी, कोलम्बस ने क्यों की ? मैंने कहा "मैं उस बारे में नहीं कह रहा हूँ , मेरा अर्थ कुछ दूसरा है "। मैं आपको एक घटना सुनाता हूँ ।

एक लड़का अजय घर से दूर रह कर इंजीनियरिंग की पढाई करता था । उसने अपने सभी दोस्तों से बता दिया था की उसके पिता जी बहुत खतरनाक है , बहुत मारते है , अगर वो कभी आयें तो तुम लोग उनसे दूर ही रहना । एक दिन दोपहर में अजय के कमरे पर कई लड़के बैठ कर गप्पे मार रहे थे , तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी । अजय ने दरवाजा खोला तो देखा सामने उसके पिता जी खड़े है । वो अन्दर आये तो अजय ने दोस्तों से इशारे में कहा की वो लोग बाहर चले जाये पर किसी ने गौर नहीं किया । अजय के पिता जी ने अन्दर आ के सबसे नाम पूछा और हाथ मिलाया और अजय को पैसे देते हुए बोले "अजय , मैं कुछ ले के आ नहीं पाया , पास में कोई दुकान हो तो सबके खाने के लिए कुछ मिठाई -समोसे ले आयो , तब तक मैं तुम्हारे दोस्तों से बात करता हूँ "। अजय ने अपने दोस्तों से फिर इशारे से जाने के लिए कहा पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, एक दोस्त ने देख लिया तो वो अजय से बोला " मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ "।

अजय अपने दोस्त के साथ सामान लेने चला गया तो अजय के पिता जी ने अपने जेब से एक सिगरेट का पैकेट निकला और इधर -उधर जेब में हाथ डाल माचिस खोजने लगे । एक लड़के ने पूछा "अंकल माचिस खोज रहे है, वो अलमारी पर रखी है" । अजय के पिता जी ने सिगरेट सुलगाली और पीते हुए बाते करने लगे फिर अचानक उन्होंने अजय के दोस्तों से पूछा क्या तुम सिगरेट पीते हो तो सबने मना कर दिया, पर जब सिगरेट के धुएं से एक-दो दोस्तों को तलब लगने लगी, तो बोले अच्छा अंकल जी हम चलते है । तब अजय के पिता जी बोले "अरे यार बाहर जा के सिगरेट पियोगे ना ,यहीं पिलो "अजय भी तो पीता मैं जानता हूँ, हमने तो १०वीं से ही सिगरेट पीना शुरू कर दिया था ". अंकल की बात सुन कर, अजय के दो दोस्तों ने अंकल से सिगरेट लेकर सुलगाली और फिर तो बातों का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ की लड़के भूल गए की वो एक दोस्त के बाप से बात कर रहे हैं ।

हर तरह की बाते उन्होंने अंकल जी से कर डाली और अजय के पिता जी भी बड़े मजे के साथ उनसे बात कर रहे थे । अजय के दोस्तों और पिता जी का शाम को बाहर खाने-पीने का भी प्रोग्राम बन गया । सबने अपने और अजय के बारे में भी सारी बाते अजय के पिता जी को बता दी , की किसकी कितनी गर्लफ्रेंड है ,कौन कितनी सिगरेट और शराब पीता है , कौन कालेज छुट्टी कर फिल्म देखने जाता है, आदि-आदि

जब अजय वापस आया तो कमरे के बाहर आती आवाज से उसे पता चल गया की, आज तो मैं गया , अन्दर सारे मौजूद है , उन्हने पता नहीं क्या-क्या पापा से बताया होगा । दरवाजा खटखटाया तो , उसके पापा ने दरवाजा खोला । अजय ने अन्दर देखा कमरे में सिगरेट का धुवाँ भरा हुआ है और उसका एक दोस्त आराम से सिगरेट पीते हुए बात कर रहा है। अजय के पिता जी ने सबको मिठाई दी और कहा की अब वो थोडा आराम करना चाहते है, तो शाम को मिलेगे । अजय के दोस्त अजय से ये कहते हुए गये की "तुम्हारे पापा कितने अच्छे है "। दोस्तों के जाने के बाद अजय के पिता जी ने बेल्ट निकाली और अजय को दम भर के मारा और बोले अगर अगली बार आया और पता चला की तुम ये सब करते हो तो पढाई छुडा के घर बैठा दूंगा ।

पिता जी के जाने के बाद अजय अपने दोस्तों के पास गया और बोला की "मैंने तुम्हे बताया था की , मेरे पापा बहुत खतरनाक है फिर भी तुम लोग उनके सामने सिगरेट पी रहे थे और उन्हें मेरे बारे मने सब कुछ बता दिया "। दोस्त बोले "सिगरेट तो तुम्हारे पापा ने ही हमें ऑफर की थी और वो कह रहे थे की उन्हें सब पता है तुम्हारे बारे में " । अजय बोला "मेरे पापा ना सिगरेट पीते है और ना शराब , वो तो तुम लोगों से सब पता करने के लिए ऐसा किया और तुम बेवकूफ लोग उनके जाल में आ गये और सब कुछ बक दिया" ।

बाप बाप है , बेटा बेटा ही है !
(कहानी सत्य घटना पर आधारित है )

16 अप्रैल, 2009

बाबा जी और भक्त

देश में बच्चे कम और बाबा ज्यादा पैदा हो रहे है, आश्चर्य की बात जितने बाबा उससे ज्यादा भक्त है । भक्त तो ऐसे पागल है की पूछिये मत, बाबा नहीं भगवान है बाबा । बाबा अनंत , बाबा की लीला अनंता ।

एक बार एक बाबा जी का ३ दिवसीय प्रवचन एक बड़े शहर के छोटे कस्बे में था । क़स्बा शहर से ४०-५० किलोमीटर दूर था । प्रवचन के पहले दिन बाबा का एक भक्त प्रवचन शुरू होने से पहले आया और बाबा जी के चरणों में १००००१ रूपये की भेंट चढाई और बाबा जी से आशीर्वाद ग्रहण किया । बाबा जी ने भक्त से पूछा की वो कहाँ से आया है तो भक्त ने बताया की वो दिल्ली में व्यवसाई है और इस शहर में उसका पैतृक निवास है । उसने बाबा जी को अपने निवास पर भी आमंत्रित किया पर बाबा जी ने मना कर दिया, बोले इस बार संभव नहीं है, वो अगली बार जब आयेगे तो जरुर जायेंगे ।

भक्त ने बाबा जी का प्रवचन प्रथम पंक्ति में बैठ कर सुनने के लिए , आयोजक से २५००० प्रतिदिन के हिसाब से 75000 रुपये देकर , बाबा जी के कागजी ट्रस्ट के नाम रसीद कटवा ली । प्रथम दिन भक्त ने बड़े श्रद्धा -भाव के साथ बाबा जी का प्रवचन सुना, जाते समय भी बाबा जी के चरण छूकर गया और आयोजक से बोला की अगली बार बाबा जी के आने , रहने और पंडाल की वयवस्था उसके तरफ से होगी ।

भक्त एक महंगी गाड़ी से आया हुआ था, साथ में एक अंगरक्षक भी था , अच्छा चढावा भी चढाया था , इन बातों से बाबा जी को लग गया की भक्त एक मोटा असामी है । अगले दिन प्रवचन में भक्त प्रवचन शुरू होने के बाद आया । प्रवचन खत्म होने पर भक्त, बाबा जी से मिला और बताया की महाराज बिजनेस की वजह से दिल्ली जाना पड़ा था लेकिन वहां से काम खत्म कर के वापस आ गया हूँ , अब कल शाम को आपका प्रवचन सुन कर ही वापस जाऊंगा , आपको गुरु बनाते ही मेरे कष्ट दूर होने लगे है , एक डूबा हुआ धन वापस आ गया है , आयोजक लोगों से कह दीजिये की जितना खर्च हो रहा है , उसका आधा पैसा मैं दूंगाबाबा खुश थे ऐसा भक्त पाकर .

अंतिम दिन प्रवचन में बहुत भीड़ हुई , लोगो ने बहुत नकद चढावा चढाया । लाखों रुपये तीन दिन के भीतर बाबा जी के पास नकद आ गए थे । बाबा जी को रात को शहर से राजधानी पकड़ कर अपने आश्रम वापस जाना था । बाबा जी ने अपने भक्त को बुलया और कहा की यदि उन्हें दिक्कत न हो तो वे उनके साथ स्टेशन चले , नकद ज्यादा है शहर ५० किलोमीटर दूर है और रास्ता भी ठीक नहीं है , अगर २ -३ गाड़ी एक साथ चलेगी तो कोई दिक्कत नहीं होगी ।

भक्त ने आग्रह किया की बाबा जी आप मेरे साथ मेरी गाड़ी में बैठ कर चलिए, रास्ते में मैं आप से बोध -ज्ञान लेता चलूँगा । बाबा मान गए । बाबा ,भक्त ,अंगरक्षक और ड्राइवर एक गाड़ी में और बाकि बाबा के चेले अन्य गाड़ियों में बैठ के रवाना हुए । भक्त का ड्राईवर बहुत तेज गाड़ी चला रहा था , जब पीछे लोग दिखाई देना बंद हो गए तो ड्राईवर ने गाड़ी सड़क से निचे उतार कर सुनसान जगह में लगा दी। बाबा को पता भी नहीं चला , वो तो भक्त को ज्ञान दे रहे थे, भक्त ने बाबा जी के रिवाल्वर लगा दी, बोला बाबा चुप -चाप उतरोगे या गोली चलानी पड़ेगी । बाबा अवाक् , सारा पैसा बाबा जी ने भक्त की गाड़ी में रखवाया था और भात उन्हें गाड़ी से उतार रहा है मतलब ये भक्त नहीं ये तो लुटेरा है । बाबा जी चुप -चाप गाड़ी से उतर गए और उनका भक्त पैसे लेकर गायब हो गया । थोडी देर में जब बाबा जी के चेले अपनी गाड़ी से रास्ते से गुजरे तो देखा बाबा जी पागलो की तरह सड़क पर टहल रहे है, उन्होंने गाड़ी रोकी और जब बाबा जी से पता चला की वो भक्त नहीं एक ठग था , तो सबके होश उड़ गए । बहुत खोजने पर भी वो भक्त (ठग), बाबा जी को नहीं मिला। पुलिस के पास जा नहीं सकते थे , किसी से बता नहीं सकते थे , क्योकि जो धन मिला था उसका हिसाब सरकार को नहीं पता चलना चाहिए था (टैक्स जो नहीं देते )।

भक्त उर्फ़ नटवरलाल बाबा को कई लाख का चूना लगा गया था । न माया मिली न राम , बाबा गए खाली हाथ

14 अप्रैल, 2009

लखनऊ में शादी

शायद १०-१२ साल पहले की बात है . मैं गाँव गया हुआ था। दादा जी ने बताया की पड़ोस गाँव में उनके एक मित्र है उनके लड़के की लखनऊ में शादी है, शादी में मुझे जाना है (दादा जी घर के अलावा कहीं भी भोजन ग्रहण नहीं करते थे इसलिए वो किसी भी शादी में नहीं जाते थे )। मैं बड़ा खुश हुआ लखनऊ बारात जा रही है तो अच्छी व्यवस्था होगी, खाने को अच्छा व्यंजन मिलेगा ।

मैं और मेरे चचेरे चाचा जी बारात में गए। बारात को ठहराने की व्यवस्था एक ३ सितारा होटल में की गई थी । खास लोगों के लिए कमरे थे और आम लोगों के लिए एक हाल में सोने की व्यवस्था की गयी थी। नाश्ते और खाने की वयवस्था बहुत अच्छी थी, पर गाँव के लोग पहली बार बफे सिस्टम में खा रहे थे, तो उन्हें बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। बफे सिस्टम को कोई गिद्ध भोज, तो कोई कुक्कुर भोज कह रहा था, एक लोगों बोल रहे थे "हम गाय-भैंस है क्या, जो खड़े हो के खाए , इतना पैसा खर्च किया २-४ मेज-कुर्सी ही लगवा देते"। कई लोगों को तो पता ही नहीं चला की वो क्या खा रहे है और बहुत से लोग तो बिना खाए ही रह गए।

रात को देर से सोये, सुबह देर से उठे तो हुआ की दैनिक क्रिया से निवृत हो लिया जाये। टॉयलेट का दरवाजा खोला तो दंग रह गया, अन्दर पाश्चयात शौचालय था, जिसका शायद किसी ने प्रयोग नहीं किया था, बहुत लोग तो फर्श पर ही हलके हो लिए थे, बड़ी हिम्मत करके सोचा पानी डाल के गंदगी बहा देता हूँ, पर बाल्टी और मग को भी लोगों ने भर दिया था। वो तो शुक्र था खाना रात को खाया था, अगर सुबह कुछ खाया होता तो पक्का उलटी कर देता

मैंने लड़के के पिता जी से कहा "बाबा, पेट खली करना है, कहाँ जाऊ , "। बाबा बोले " बच्चा, अभी हालत ठीक है तो रोके रहो, नहीं तो बाहर कही हो आओ, यहाँ के सारे टॉयलेट भाई लोगों गन्दा कर दिया है, दरवाजा खोलना मुश्किल है, मनेजर सुबह-सुबह कई लोगों को सुना के गया है"।

मैं और चाचा जी बाहर जा के सार्वजनिक शौचालय से निपट आये। वापस आये तो लोग काफी, पकौडे और जलेबी का नास्ता कर रहे थे। तभी लड़की के भाई को लड़के के बड़े पिता जी (ताऊ ) ने पकड़ लिया और उससे कहने लगे "हलवाई बहुत ख़राब है, देखो चाय का दूध ही जला दिया है, कैसा कड़वा स्वाद आ रहा है"। लड़की का भाई बोला "जी ये चाय नहीं काफी है "।

लड़के के बड़े पिता जी फिर बोले "रात को खाने में भी सुरन (जिमीकंद) की सब्जी भी चीमड़ (सख्त )कर दिया था और एक बात बताओ ये दुई ठो गोभी की सब्जी काहे बनवाए थे "। लड़की का भाई सोच में पड़ गया , सुरन की सब्जी तो बनी नहीं थी, इन्हें खाने के लिए कहाँ से मिल गयी और गोभी तो एक बनी थी दूसरी सब्जी गोभी की कहाँ से आ गयी

चाचा जी बोले "काका , पनीर की सब्जी को सुरन समझ रहे है और मसरूम वाली सब्जी को भी गोभी समझ रहे हैं "। लड़की का भाई अभी कुछ बोलता उससे पहले लड़के के बड़े पिता जी बोले उठे "ये पनीर तो नाम सुने है और जानते है पर इ मसरूम का है "।

चाचा बोले "काका , कुकुरमुत्ता जो खाने वाला होता है उसे मसरूम बोलते है "। लड़के के बड़े पिता जी "राम राम , तो हमें इ लोग कुकुरमुत्ता खिला दिए"। बड़ी मुश्किल से लड़की वालों ने उन्हें समझाया तब जा के कहीं वो शांत हुए ।

उस शादी से लौटने के बाद अब गाँव का कोई भी बुजुर्ग बड़े शहर की शादी में नहीं जाता है और न ही कोई लेके जाता है ।

13 अप्रैल, 2009

२ रूपये कहाँ गए

बहुत पहले कभी किसी ने मुझसे ये सवाल पूछा था .शायद मैंने उसे उत्तर भी बताया था पर अब उत्तर याद नहीं रहा शायद आप इसका उत्तर बता सके .

एक बार तीन आदमी एक दुकान पर छाता खरीदने गए . दुकान पर मालिक नहीं था , नौकर ने उन्हें छाता दिखाया और छाते का दाम ६० रूपये बताया . तीनो आदमी ने अपनी जेब से २०-२० रूपये निकाल के नौकर को दे दिए और छाता लेके चले गए . थोडी देर बाद दुकान का मालिक आया तो नौकर ने बताया "मालिक, अभी मैंने वो वाला छाता ६० रूपये में बेच दिया ". दुकानदार बोला "वो छाता तो ५० रूपये का था . तुम उन्हें जाकर १० रूपये लौटा दो ".

नौकर १० रूपये लेकर उन्हें लौटने जाता है , तो सोचने लगता है की १० रूपये आदमी में कैसे बांटेगा .वो हर एक को - रुपये लौटा देता है और रुपये अपने पास रख लेता है .

अब नौकर लौटते समय हिसाब लगता है की सबने २०-२० रूपये दिए थे , मैंने उन्हें - रूपये लौटा दिए तो एक आदमी को छाते का दाम पड़ा १८ रूपये . मतलब १८ x = ५४ और रूपये मेरे पास , ५४ + = ५८ पर छाता तो मैंने ६० रुपये का बेचा था फिर रुपये कहा गए .

बेचारा नौकर ये सोच कर बड़ा परेशान है , आप बताइए रूपये कहाँ गए .
गणित के हिसाब से ५० रुपये दुकानदार के पास और रुपये नौकर के पास मतलब कुल ५४ रूपये और ५४ रुपये तीनो आदमीं ने दिए तो हिसाब तो ठीक है पर नौकर ऐसा नही सोच रहा। . उसका तो सोचना ये है की जब उसने ६० रूपये में छाता बेचा तो कुल योग ६० होना चाहिए ५८ नही .

11 अप्रैल, 2009

हँसना जरुरी है


रामप्यारी (ताऊ से)- जब आप तेजी से कार चलाते हुए टर्निग लेते हो तो मुझे डर लगता है कि कहीं कोई दुर्घटना न हो जाए।
ताऊ (रामप्यारी से)- बेवकूफ , ऐसे मौकों पर तुम डरो मत मेरी तरह तुम भी चुपचाप आंखें बंद कर लिया करो।


ताऊ मस्ती के मूड में थे, पहुँच गए डाक्टर के पास ।
ताऊ (डॉक्टर से)- डॉक्टर साहब, मुझे एक समस्या है।
डॉक्टर (ताऊ से)- क्या?

ताऊ- मुझे बात करते वक्त आदमी दिखाई नहीं देता।
डॉक्टर- ऐसा कब होता है?
ताऊ- जब-जब मैं फोन पर बात करता हूं।



बेटा (बाप से)- पापा मैं इतना बड़ा कब हो जाऊगा कि मम्मी से बिना पूछे कही जा सकूं ।
बाप (बेटे से)- इतना बड़ा तो मैं भी अभी नहीं हुआ हूं।


एक दिन मैं एक दुकान में गया। कभी कोई चीज उठाता, उसे देखता फिर उसे रखकर दूसरी चीज उठा लेता। कुछ पूछताछ भी की दुकानदार से , लेकिन कुछ खरीदा नहीं।
काफी देर तक मैंने ऐसा ही किया तो झुंझलाकर दुकानदार ने पूछा- श्रीमानजी, आखिर आपको चाहिए क्या?
मौका! मैंने जवाब दिया।

एक
बार , मैं टिकेट की लाइन में लगा हुआ था तभी एक हट्टा-तगड़ा सरदार आता है और मुझे हटने के लिए कहता है .
मैं
-मैं क्यों हटू ?
सरदार -हट जा नहीं तो ..
मैं
- नहीं तो क्या ?
(सरदार मुझे एक झापड़ मार देता है)
मैं - सरदार जी, आपने ये झापड़ मजाक में तो नहीं मारा है ना ?
सरदार -नहीं ?
मैं - ठीक है ,तब कोई बात नहीं .
सरदार
-तुम ऐसा क्यों पूछ रहे ?
मैं - क्योंकि मुझे मजाक पसंद नहीं .

एक दिन वही सरदार जी मुझे मिल गए एक ऊँचे पहाड़ के ऊपर बैठकर पढाई कर रहे थे .
मैंने
, उनसे पुछा, -'' क्या कर रहे हो ?''
सरदार
जी ने जवाब दिया, '' हायर स्टडीज ''

मैं (एक दिन ) - ऐसी जिंदगी से तो मौत अच्छी ....
अचानक यमदूत आ गए..और बोले.. तुम्हारी जान लेने का हुक्म है।
मैं - लो बताओ, अब इंसान मजाक भी नही कर सकता है क्या...?

अपने वकील साहब (चोर से)- क्या तुमने चोरी की थी ?
चोर (वकील साहब से)- जी साहब।
वकील साहब- यह बताओ कि तुमने चोरी कैसे की ?

चोर- रहने दीजिए वकील साहब, अब इस उम्र में आप चोरी के गुण सीखकर क्या करेंगे!

टीचर (रामप्यारी से)- तुम मेरी कक्षा में सो नहीं सकती
रामप्यारी (टीचर से)- सर, सो तो सकती हूं अगर आप जोर से ना बोलें।

(साभार अंतरजाल)

10 अप्रैल, 2009

आत्मविश्वास और लक्ष्य

किसी काम को करने के लिए आत्मविश्वास की जरुरत होती है , समय , भाग्य , परिस्थितियाँ तो केवल सहायक या अवरोधक होती है . जैसे आग जलाने के लिए आग की जरुरत होती है , लकडी , तेल , घी , पेट्रोल , गैस तो केवल सहायक होती है . अब आप कहोगे की आग लगाने के लिए एक चिंगारी भी बहुत है तो मैं कहता हूँ चिंगारी भी तो एक आग है . किसी काम को करने के लिए मुख्य वस्तु का होना आवश्यक है .

एक बार की बात है .छोटे शहरों से महानगर में पढ़ने के लिए ४-५ लड़के गए . एक ही क्लास में होने के कारण उनमे दोस्ती हो गयी . घर से दूर होने के कारण घूमने-फिरने की आजादी मिल गयी तो खूब घुमे फिरे . दो-तीन महीने गुजर गए तो उन्हें अहसास हुआ की क्लास में हर लड़के की गर्लफ्रेंड है पर उनकी नहीं तो उन्होंने भी गर्लफ्रेंड बनाने की सोची.

उन्होंने काफी सोचने के बाद ये निर्णय किया की जब तक वो दुसरे लड़को की तरह कपडे (जींस-टीशर्ट ) नहीं पहनेगे तब तक कुछ नहीं होगा .कुछ दिने में सबके पास अच्छी कंपनी के कपडे आ गए पर कोई गर्लफ्रेंड नहीं बनती तो उन्होंने फिर से एक बैठक की और ढूंढा की जब तक वो अंग्रेजी बोलना नहीं सिख लेते तब तक कोई लड़की उनसे बात नहीं करने वाली तो पहले अंग्रेजी सीखनी होगी .

२-३ महीने में वो इंग्लिश क्लास करके काम चलाऊ अंग्रेजी बोलने लगे पर फिर भी किसी की कोई गर्लफ्रेंड नहीं बनी तो उन्होंने फिर से एक बैठक की और इस बार इस नतीजे पर पहुंचे की जब तक एक बाइक (मोटर सायकल ) नहीं होगी तब तक कोई लड़की उन्हें अपना बॉयफ्रेंड नहीं बनाएगी . बड़ी कोशिस करके सबने किसी तरफ से एक बाइक का भी इन्तेजाम कर लिया पर फिर भी किसी की कोई गर्लफ्रेंड नहीं बनी .

दो साल गुजर गए कोशिस करते -करते पर जब हाल वही रहा की जैसा २ साल पहले था, वैसा आज भी तो उन्होंने फिर से एक बार बैठक की और इस बार ये फैसला हुआ की जब तक मोबाइल नहीं होगा तब तक कुछ नहीं होगा क्योंकि अगर मोबाइल नहीं तो आप दुनिया के सम्पर्क में नहीं , अब ये फैसला हुआ की एक मोबाइल सबके पास होना चाहिए (ये बात उस समय की है जब इन्कामिंग के पैसे लगते थे ). किसी तरह लड़कों ने जुगाड़ करके एक मोबाइल भी ले लिया पर कोई फर्क नहीं पड़ा .

देखते -देखते ३ साल गुजर गए पढाई खत्म हो गयी पर कोई गर्ल फ्रेंड नहीं बनी तो उन्होंने ने निर्णय लिया की अब वो अलग-अलग कालेज में दाखिला लेगे और गर्लफ्रेंड बना के रहेंगे .सब ने अलग-अलग कालेज में अलग-अलग कोर्स में दाखिला लिया और लग गए अपने एक सूत्री कार्यक्रम पर, लेकिन ६ महीने गुज़र जाने के बाद भी जब कोई बात नहीं बनी तो वो वापस फिर एक दिन मिले और विश्लेष्ण करना शुरू किया . बहुत सोचने के बाद वो इस नतीजे पर पहुंचे की गर्लफ्रेंड बनाने की लिए ना ही गाड़ी चाहिए ना ही मोबाइल चाहिए और ना ही अंग्रेजी चाहिए, गर्लफ्रेंड बनाने के लिए एक लड़की चाहिए और थोड़ा आत्मविश्वास भी होना चाहिए .