31 मार्च, 2009

हमारे पडोसी

पडोसी की जागरूकता और हितेषीपन कैसा होता है ये तो सब जानते है । एक कंपनी वाले तो ये कहते है की "आप किसी भी बात को अपने पडोसी से मत बताओ क्योंकि पडोसी, कभी भी आप का भला नही चाहेगा ।" अब वे ऐसा क्यों कहते है पता नहीं पर कुछ ऐसा हादसा हुआ की हमने भी जान लिया की दूर गाँव का आदमीं अच्छा है पर पडोसी नहीं ।

वाक्या ऐसा है की हम चार दोस्त(मैं , राहुल , नविन और सतेन्द्र ) सेक्टर १७ वसुंधरा गाजियाबाद में एक तीन कमरे का फ्लैट किराये पर लेके रहते थे। उस समय जयपुरिया इंस्टिट्यूट से ऍम सी ए कर रहे थे। बाहर के खाने से तंग आकर हमने घर में ही खाना बनाना शुरू कर दिया था। सतेन्द्र का घर सबसे पास में था वो रुड़की का रहने वाला था। उसके मम्मी-पापा एक दिन आके हमें सारा रसोई का सामान दिलवा गए थे। हम भी छुट्टियों में सतेन्द्र के घर चले जाते थे ।

खाना बनाने में सबसे मुश्किल काम होता था रोटी बनाना जिसे कोई नहीं चाहता था इसलिए हमने आपस में पारी बांध दी थी एक सप्ताह की। एक दिन दोपहर में सतेन्द्र की दीदी का फ़ोन आया की वो शाम को आ रही है कल उन्हें दिल्ली में कुछ काम है। दीदी के आने पर हम बड़े खुश थे की चलो आज अच्छा खाने को मिलेगा और कुछ करना भी नहीं पड़ेगा। दीदी ने पनीर की सब्जी और रोटी और चावल बनाये, रात के १० बज चुके थे और हम खाने जा ही रहे थे की दरवाजे की घंटी बजी।

नविन ने दरवाजा खोला तो देखा एक दरोगा, दो सिपाही के साथ दरवाजे पर खडा है। दरोगा ने अन्दर घुसते ही पूछा "यहाँ कौन-कौन रहता है?" नविन बोला "जी हम चार लोग रहते है"। दरोगा ने फिर पूछा "क्या काम करते हो "। नविन बोला" जी, जयपुरिया में पढ़ते है "। दरोगा बोले "आइकार्ड दिखाओ"। हमने अपने आइकार्ड दिखाए । फिर उसने पूछा "ये लड़की कौन है" । सतेन्द्र बोला "सर , मेरी दीदी है "। दरोगा बोले "तेरी सगी बहन है "। सतेन्द्र बोला "हाँ, जी "। तब एक सिपाही सतेन्द्र को लेके बाहर चला गया। दरोगा ने दीदी से पूछा "तुम्हारे मामा हैं ?" दीदी बोली "हाँ हैं "। दरोगा ने फिर पूछा "नाम क्या है उनका ?" दीदी ने मामा जी का नाम बताया । तब तक वो सिपाही जो सतेन्द्र को लेके बहार गया था अन्दर आ गया, सतेन्द्र अभी बाहर ही था । सिपाही ने दरोगा के कान में कुछ बोला उसके बाद , दरोगा साहब ने सतेन्द्र को अन्दर बुला लिया और बोले "ज्यादा घुमा-फिरा मत किया करो आराम से पढो-लिखो" इतना कह के वो चले गए ।

अब सतेन्द्र गुस्से में था की ये पुलिस वाले क्यूँ आये थे , किसने फ़ोन करके इन्हें बुलया था । राहुल बोला शांत हो जाओ जिसने भी बुलाया होगा, देख अभी थोडी देर में आ रहा होगा।

५ मिनट बीते होगे की लगभग एक ३५ वर्षीय आदमी दरवाजे पर आ गया। बोला "जी मैं आपके निचे वाले फलैट में रहता हूँ , ये पुलिस वाले क्यों आये थे ?"। सतेन्द्र बोला "जी, वो तो भैया है हमारे यही इन्द्रपुरम थाने में हैं तो मिलने आये थे ". उस आदमी का चेहरा अजीब सा हो गया । फिर बोला "आप कितने लोग रहते है ?" सतेन्द्र बोला "१० लोग रहते है , अभी ६ घर गए हैं बाकी ४ हैं "। वो आदमी फिर बोला "क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ "। सतेन्द्र बोला "नहीं , आप अन्दर नहीं आ सकते है "। वो बोला "क्यों "। सतेन्द्र बोला "आप हैं कौन , न तो आप मेरे मकान मालिक है और नहीं आप सोसायटी इन्चार्ग"। वो बोला "मैं आप का पडोसी हूँ "। सतेन्द्र बोला "हमने तो आप को कभी नहीं देखा , क्या पता आप चोर हो "। अब वह आदमी गुस्से में आ गया था , बोला "आप लोग लड़की ले के आये है "। सतेन्द्र बोला" हाँ ,लेके आये हैं तो क्या कर लोगे", आदमी बोला "वो पुलिस वाले तो आपके भैया नहीं थे, मैंने चौकी में फ़ोन करके उन्हें बुलया था पर आप लोगो ने शायद लड़की को कही छुपा दिया होगा" तब तक राहुल बोल पड़ा "देखिये आप तमीज इस बात कीजिये हमारी दीदी आई हुई हैं "। वो आदमी बोला "अच्छा आप की बड़ी बहन है, मुझे लगा की आप लोग लड़की लेके आये हैं, इसलिए मैंने चौकी फ़ोन करके पुलिस वालो को बुलाया था" अब सतेन्द्र का गुस्सा भड़क उठा था बोला "क्या लड़को के घर में माँ -बहन , मौसी, बुआ, चाची नहीं आ सकती। आपने फ़ोन करने से पहले एक बार पता तो कर लिया होता। चले जाओ यहाँ से वरना एक लात मरूँगा सीढ़ी से निचे गिर जावोगे" वो आदमी चुप-चाप निचे चला गया।

30 मार्च, 2009

मुस्कुराना टैक्स फ्री है

एक लेखपाल जी थे , उनसे नायब साहब ने राजस्व रिपोर्ट मांगी थी ३१ मार्च से पहले । ३० मार्च को भी लेखपाल जी आराम कर रहे थे , रिपोर्ट बनाना शुरू ही नही किए थे ।
नायब साहब ने पूछा - लेखपाल जी रिपोर्ट बन गई ?
लेखपाल जी बोले - हाँ साहब , रहा काम थोड़ा जीन-लगाम-घोड़ा ।

दर्शनशास्त्र के क्लास में प्रोफेसर ने छात्रों से पूछा, आपकी नजर में वास्तविक और निष्ठावान आशावादी कौन है?

एक छात्र ने उत्तर दिया, सर! वह व्यक्ति जो सालों से गंजा है लेकिन जेब में कंघा लिए घूमता है।

एक आदमी अपने मित्र से कह रहा था- मैं बूढ़ा होता जा रहा हूं। जिस तरह लोग मुझसे बातें करते हैं, इससे तो यही अंदाजा होता है।
यह सुनकर उसके मित्र ने तसल्ली देते हुए कहा- तुम बूढ़े नहीं हो। अच्छा यह बताओ कि लोग तुमसे किस अंदाज से बातें करते हैं।
उस आदमी का उत्तर था- पहले वे मुझसे कहा करते थे कि आप शादी क्यों नहीं कर लेते और अब कहते हैं कि आपने शादी क्यों नहीं की?

बस स्टैंड पर खड़े एक युवक ने एक सुंदर युवती से कहा, मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मैंने आपको पहले भी कहीं देखा है और आपसे बाते भी की है।
युवती मुस्कराई और मीठे स्वर बोली, मुझे विश्वास है कि आपका विश्वास सही है क्योंकि मैं पागलखाने में नर्स हूं।

कॉलेज के पहले दिन, प्राचार्य महोदय ने छात्रों को कॉलेज के नियम समझाये- कोई भी लड़का लड़कियों के हॉस्टल में नही जा सकेगा। इसी प्रकार कोई भी लड़की लड़कों के हॉस्टल में नहीं जा सकती। इस नियम का उल्लंघन करने पर पहली बार 100 रुपये जुर्माना भरना पड़ेगा।
दूसरी बार पकड़े जाने पर 200 रुपये जुर्माना भरना पड़ेगा। इसी प्रकार यदि तीसरी बार पकड़े गये तो 1000 रुपये जुर्माना अदा करना होगा। किसी को इस बारे में कुछ पूछना है?
एक लड़के ने हाथ उठाया और पूछा, पूरे एक सत्र के लिए क्या देना होगा सर?

सुरेन्द्र जी (पत्नी से)- अगर मैं मर जाऊं तो तुम क्या करोगी ?
पत्नी (सुरेन्द्र जी से)- वही अगर जो मैं मर जाऊं तो आप करते।
सुरेन्द्र जी (पत्नी से)-मुझे मालूम था तुम दोबारा शादी किए बिना नहीं रहोगी।

कॉलेज में एक बड़ी उम्र की लड़की ने दाखिला लिया तो सारे लड़के-लड़कियों ने उसे मौसी कहना शुरू कर दिया। कुछ दिनों तक तो उस बेचारी ने सहन किया। अंत में उसने तंग आकर प्रिंसिपल से शिकायत की।
प्रिंसिपल को बड़ा क्रोध आया तो क्लास रूम में पहुंचे और बोले- जो भी इसे मौसी कहता है वह तुरन्त खड़ा हो जाये।
एक-एक करके सारी क्लास खड़ी हो गयी। केवल एक लड़का बैठा रहा। प्रिंसिपल ने बड़ी हैरानी के साथ उस लड़के से पूछा- क्यों भई! तुम इसे मौसी नहीं कहते?
लड़के ने ठंडी सांस भरकर कहा- सर! मैं सारी क्लास का मौसा हूं।
(साभार जागरण )

28 मार्च, 2009

हँसना मना है

ताऊ को कई दिन से धमकी भरे फ़ोन मिल रहे थे , तो उन्होंने इस बारे में पुलिस को बताना ठीक समझा .
ताऊ (पुलिस से)- मुझे फोन पर धमकियां मिल रही है।
पुलिस (ताऊ से)- कौन है जो आपको धमकियां दे रहा है?
ताऊ (पुलिस से)-टेलीफोन वाले बोल रहे हैं बिल नहीं भरोंगे तो काट दूंगा।

एक दिन एक भिखारी ताऊ को मिल गया
भिखारी (ताऊ से)- पचास पैसे दे दो भैया, मैंने तीन दिन से खाना नहीं खाया है।
ताऊ (भिखारी से)- दस रुपये दूंगा, पहले ये तो बता पचास पैसे में खाना कहां मिलता है।

एक दिन राज जी ने ताऊ से पूछा
राज जी (ताऊ से)- अगले जन्म में तुम किस रूप में पैदा होना चाहोगे?
ताऊ (राज जी से)- कॉकरोच बनकर।
राज जी - वो क्यूं?
ताऊ - क्योंकि मेरी पत्नी(ताई ) केवल कॉकरोच से ही डरती है।

रामप्यारी को तो आप जानते ही पढ़ने में तो उसका मन लगता ही पर दिमाग बहुत चलता है .
मास्टर (रामप्यारी से )- मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो, बताओ अंडा पहले आया था या मुर्गी?
रामप्यारी (मास्टर से)- अंडा
मास्टर (रामप्यारी से)- कैसे बताओ?
रामप्यारी (मास्टर से)- सर, यह तो दूसरा प्रश्न पूछ डाला।

सुरेंद्र जी तो आप को याद ही होंगे वो इलाहबाद से रायबरेली वाले , उनकी पत्नी ने उनसे पूछा
पत्नी (सुरेंद्र जी से)- अगर मैं मर जांऊ तो क्या तुम्हें बहुत दुख होगा?
सुरेंद्र जी (पत्नी से)- हां, दुख तो होगा ही।
पत्नी (सुरेंद्र जी से)- क्या तुम कभी-कभी मेरी कब्र पा आया करोगे?
सुरेंद्र जी (पत्नी से)-कभी-कभी क्यों रोज ही आया करूंगा। कब्रिस्तान मेरे दफ्तर के पास ही तो पड़ता है।

एक दिन रात को सुरेन्द्र जी अकेले घर जा रहे थे, रास्ते में पुलिसवाला मिल गया .
पुलिस (सुरेन्द्र जी से)- रात के 1 बजे तुम कहां जा रहे हो?
सुरेन्द्र जी (पुलिस से)- मैं शराब पीने के दुष्परिणाम पर भाषण सुनने जा रहा हूं।
पुलिस (सुरेन्द्र जी से)-इतनी रात मैं तुम्हे कौन भाषण देगा?
सुरेन्द्र जी (पुलिस से)- मेरी बीवी।

एक दिन रास्ते में दिवेदी जी (वकील साहब ) को एक भिखारी मिल गया .
भिखारी (वकील साहब से)- बाबू कुछ पैसे दे दो।
वकील साहब (भिखारी से)- अरे भई, मोटे तगड़े हो, कुछ काम क्यों नहीं करते?
भिखारी (वकील साहब से)- मैंने पैसे मांगे है, सलाह नहीं।

एक दिन बस में
मैं (जेबकतरे को)- तुम्हें शर्म नही आती, मेरी जेब काटते हो?
जेबकतरा (मुझसे से)- शर्म तो आपको आनी चाहिए जेब में एक पैसा भी नही रखते।
(साभार जागरण )

27 मार्च, 2009

वक़्त तेज चलता है

कभी -कभी कुछ मन में ख्याल आता है , उन्हें आज सबको सुनाना चाहता हूँ .

हर बार उठता , सम्भलता और चलता हूँ

फिर भी खुद को सबसे पीछे पाता हूँ !
बहुत बार पूछा है मैंने खुद से ये सवाल
वक़्त तेज चलता है या मैं धीरे रह जाता हूँ !!

हर बार देखता हूँ
हर बार सोचता हूँ !
कुछ कहना चाहता हूँ
पर हर बार खामोश रह जाता हूँ !!

कभी खुद की, कभी दुसरो की सुनता हूँ
सोच कर बहोत एक कदम आगे रखता हूँ !
पर जब देखता हूँ उस जगह को,पता चलता है
दो कदम वक़्त से पीछे रहता हूँ !!

सफ़र करने की चाह थी जिन्दगी में बहोत
जिन्दगी को एक सफ़र की तरह जीये जा रहे है !
कभी सफ़र थका देता है , कभी जिन्दगी थक जाती है
फिर भी मंजिल की तलाश में हम चले जा रहे हैं !!

ऐ दोस्त तेरे याद में हम अपना सबकुछ लुटा बैठे है!
हम अपना आज तो क्या इतिहास मिटा बैठे है !!
और वो सोचते हैं की हम उनको भुला बैठे है !!!

26 मार्च, 2009

ऐसा क्यों हुआ

शायद १०-१२ साल पहले की बात है, मेरे पड़ोस में एक परिवार रहता था। परिवार में नीलू आंटी, उनके पति और तीन बच्चे थे। बड़ा बेटा ७-८ साल का, मझला बेटा ५-६ साल का और सबसे छोटा बेटा ४-५ महीने का था। नीलू आंटी का छोटा बेटा ऑपरेशन से पैदा हुआ था, डाक्टर ने नीलू आंटी से बोल दिया था की अब वो माँ नहीं बन पायेगी। नीलू आंटी हमेशा मुस्कुराती रहती थी, मैंने कभी उन्हें गुस्से में नहीं देखा था। शायद इसी कारण उनका बड़ा बेटा बहुत शरारती था।

एक दिन नीलू आंटी छोटे बच्चे को टब में नहला रही थी। बड़ा और मझला छत पर खेल रहे थे। अचानक मझले बेटे की दर्दनाक चीख नीलू आंटी को सुनाई दी। वो छत की ओर भागी, ऊपर जा के देखा तो मझले बेटे के पेट में चाकू लगा हुआ है और वो चीख रहा है।
मां को देख उसने बोला की "भैया बोले जैसे मम्मी का ऑपरेशन करके छोटू आया है, मैं भी तेरा ऑपरेशन कर के छोटू लाऊंगा"। नीलू आंटी ने पूछा "वो कहाँ है ?"। मझला बोला "वो उधर पीछे की तरफ से कूद गए "।
नीलू आंटी ने जब नीचे जमीन पर देखा तो बड़ा बेटा ( दुसरे मंजिल से नीचे कूद जाने से सर फट गया था) मर चुका था। अभी वह कुछ और सोच पाती तभी उन्हें याद आया की छोटे बेटे को तो वो टब में ही छोड़ आई है।
वो नीचे दौडी पर जब तक वह आती तब तक छोटा बेटा पानी में डूब कर मर चुका था। अभी वो उसको हाथ में लेकर देख ही रही थी की याद आया मझले को तो चाकू लगा है।
वो फिर ऊपर भागी पर अब तक मझला भी अंतिम सांसे ले रहा था, उसके शरीर से बहुत खून बह चुका था। जब तक लोग आके उसे अस्पताल ले जाते तब तक वह मर चुका था।
नीलू आंटी ने चन्द मिनटों में अपने तीनो बच्चे खो दिए थे। उनकी आँखों से आंसू नहीं निकल रहे थे वो पतथर की तरफ बुत बन गयी थी। जिसने भी इस घटना को सुना वो स्तभ रह गया और एक सवाल सबके दिमाग में था, आखिर ऐसा उनके साथ क्यों हुआ ?

25 मार्च, 2009

जाना कहाँ है


एक नवयुवक एक छोटे से रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर के पास जाता है और पूछता है

युवक - पूर्व से आने वाली गाड़ी कब आएगी ?

स्टेशन मास्टर - घंटे बाद आएगी

युवक - पश्छिम से आने वाली गाड़ी कब आएगी ?

स्टेशन मास्टर - शाम को आएगी।

युवक - कोई मेल-एक्सप्रेस गाड़ी कब आएगी ?

स्टेशन मास्टर - ये छोटा स्टेशन है , यहाँ मेल गाड़ी नहीं रुकती है।

युवक - अच्छा ये बता सकते हैं कि मेल गाड़ी कब गुज़रती है ?

स्टेशन मास्टर - हर एक-आध घंटे में मेल-एक्सप्रेस गाड़ी यहाँ से पास होती है।

युवक - अच्छा कितनी देर बाद गाड़ी यहाँ से पास होगी ?

स्टेशन मास्टर - थोडी देर में एक गाड़ी पूर्व से आनेवाली है।

युवक - अच्छा पश्चिम से भी कोई गाड़ी आनेवाली है क्या ?

स्टेशन मास्टर - हाँ एक मालगाडी गुजरेगी।(स्टेशन मास्टर को अब गुस्सा आने लगता है )

युवक - अच्छा मतलब अभी १० मिनट के अन्दर कोई गाड़ी नहीं आएगी ?

स्टेशन मास्टर - नहीं, तुम्हे जाना कहाँ है ?(गुस्साते हुए )

युवक - जी मुझे पटरी पार करनी है।
(स्टेशन मास्टर अपना सर पटकने लगता है )

24 मार्च, 2009

हे हर हार आहार सुत


हे हर हार आहार सुत विनय करू कर जोर !
एक छोटी सी विनती सुनो तुम मोर !!

कितने सारे लोग लिख रहे नित्य नूतन लेख !
राम का नाम लेके लिखो आप भी आलेख !!

मिल गयी लेख पर टिप्पणिया तो समझे लंका जराये !
नहीं मिली अगर तो समझो बिन बूटीवाला पर्वत लाये !!

बहुत हुआ रथ के ऊपर बैठ देखत नजारा !
दिखाओ सारथी को अपना अतुलित बल सारा !!

उड़न खटोले बहुत उड़ गए आकाश में !
तुम भी अपना पवन वेग दिखाओ इस संसार में !!

कोई बैठा दूर देश में करता है राज !
दिखा दो आप भी अपना कौशल दुनिया को आज !!

नर-वानर, कुत्ते-बिल्ल्लियाँ और शिशु लिखते नित्य नए लेख !
आप भी एक रामनामा लिख कर करो श्री गणेश !!

प्रभु फुरसत से अब बैठो नहीं शुरू करो आलेख !
मंदी के दौर में भी दिन-प्रतिदिन वृद्धि कर रहे लेख !!

बहुत लिख दिया लोगों ने लेख नए ज्ञान के !
आप भी एक प्रहार करो बने क्यों हो अज्ञान से !!

पूजा-अर्चना बहुत हो गयी श्री राम की !
एक रचना लिखो फिर सुध रहेगी आराम की !!

आप भी अपना एक चिट्ठा ले आओ इस जगत में !
फिर उस पर अनुसरन करवाओ अपने भगत से !!

अपने लेखो को ब्लोगवाणी में सबसे पसंद करवाओ !
और चिट्ठा जगत में धुरन्धर लिक्खाड़ कहलवाओ !!

यह छोटी सी विनती सुनो तुम मोर !
हे हर हार आहार सुत विनय करू कर जोर !!

23 मार्च, 2009

दर्द क्या है

एक बार बहुत से लोगों ने एक सभा का आयोजन किया, विषय था दर्द क्या है। हर कोई अपनी राय देने के लिए स्वतंत्र था।

पहले एक डाक्टर महोदय आये और बोले "दर्द मांसपेशियों में खिचाव के कारण उत्पन होता है "।

कवि महोदय आये और बोले "दर्द एक अहसास है जो कविता को जन्म देता है "।

एक प्रेमी बोला "दर्द प्रेमिका की जुदाई से होता है "।

एक ब्लोगर बोले "लेख बड़ी मेहनत से लिखो और उसपे टिप्पणी न मिले तो दर्द होता है "।

एक विचारक बोले "दर्द वो है जो आनंद के न होने पर हम महसूस करते है "।

एक अभिनेता बोले "दर्द वो है जो पहले ही हप्ते फिल्म के फ्लाप होने पर होता है "।

एक छात्र बोला "दर्द परीक्षा में फेल होने पर होता है"।

शराबी बोला "दर्द वो है जो भरी बोतल के टूटने पर होता है "।

एक प्रोग्रामर बोला "दर्द वो है जब एक खुबसूरत लड़की मेरे प्रोजेक्ट को ज्वाइन करना चाहती है और प्रोजेक्ट मेनेजर मना कर देता है"।

एक महिला बोली "दर्द तब होता है जब मुझसे कम पैसे दे कर मेरी पडोसन वही साडी खरीद लाती है"।

अब हर कोई अलग-अलग तरह से दर्द की व्याख्या कर रहे थे, जब कई घंटे गुजर गए तो हमारे ताऊ से नहीं रहा गया। उन्होंने अपना लट्ठ उठाया और बजाना शुरू कर दिया, जब सब चिल्लाने लगे, तो ताऊ बोले अब दर्द समझ में आया या फिर से बताऊँ। सब बोले नहीं हमे समझ में आ गया। ताऊ बोले "जब तक दर्द होगा नही तब तक पता कैसे चलेगा, लट्ठ पड़ी तो सबको पता चल गया की दर्द कैसा होता है "।

21 मार्च, 2009

सुरेन्द्र जी का सबक

सुरेन्द्र जी ने रायबरेली से आने के बाद अपना कमरा बदल लिया, जहाँ पर एक सामूहिक स्नानागार और शौचालय था । कमरे में सब कुछ तो ठीक था पर सामान रखने के लिए कोई अलमारी नहीं थी, सुरेन्द्र जी अपना तेल, साबुन इत्यादि सामान खिड़की के ऊपर रखते थे । एक दिन सुबह उन्होंने अपना साबुन उठाया तो वो गिला था उन्हें लगा शायद कही से पानी गिर गया होगा, पर अगले दिन जब साबुन फिर गिला था, तो उन्हें शक हुआ की हो न हो कोई मेरा साबुन इस्तेमाल कर रहा है ।

उन्होंने ने सबसे पूछा "का हो केहू हमार साबुन लगावत हो का"। सबने मना कर दिया। अगले दिन वो सुबह ४ बजे उठ गए और देखने लगे की आज देखता कौन मेरा साबुन ले के जाता है , तभी उन्हें एक परछाई दिखाई देती है जो उनका साबुन ले के जा रही है, थोडी देर बाद उसने साबुन लाकर वहीँ रख दिया, लेकिन वो आदमी बगल वाले कमरे गया ये बात सुरेन्द्र जी को पता चल गयी।

सुबह उन्होंने बगल के कमरे में रहने वाले राम आसरे से पूछा "का हो तू हमार साबुन लगावत हो"। राम आसरे बोले "अरे सुरेन्दर भईया, हम त बिना साबुन के नहाईला , हम तोहार साबुन काहे लगाइब"।

सुरेन्द्र जी ने अब रंगे हाथो चोर को पकड़ने की सोची। उन्होंने एक नया साबुन लाकर वहीँ पर रख दिया। अगले दिन फिर कोई साबुन लेके गया, पर बहुत देर बाद उसने साबुन लाके वहां पर रख दिया। सुरेन्द्र जी ने एक दो लोगों को इकठा किया और हर कमरे के लोगो से जाकर मिलने लगे , अंतिम कमरा राम आसरे का था पर वो दरवाजा ही नहीं खोल रहा था । जब उन्होंने ने धमकी दी दरवाजा नहीं खोलोगे तो तोड़ देंगे तो , राम आसरे ने दरवाजा खोल दिया ।

राम आसरे को देखते सबकी हंसी छुट गयी , रामआसरे के सर, हाथ, भौह और पलकों के बाल गायब थे . हुआ ये था कि सुरेन्द्र जी ने बालसफा साबुन लाकर रख दिया था। सुरेन्द्र जी ने फिर कहा "जब हम कल तोहसे पूछे की हमार साबुन लगावत हो, त तू मना कई दिहो, इही खातिन हम इ बालसफा साबुन ले के आ ये रहे की, अब जे साबुन लगावत होए रँगे हाथे पकडा जाये। कल तू सच बोल दिहे होता त, का हम तोहके गोली थोड़े मार देते , पर तू झूठ बोले उही का इ सजा बा की अब तब महिना भर केहू के आपन चेहरा न दिखैबो और जिनगी भर चोरी कइके कौनो काम नहीं करबो ।"

उसके बाद से सुरेन्द्र जी का कोई समान बिना पूछे किसी ने कभी नहीं लिया , इतना खतरनाक सबक जो उन्होंने दिया था ।

20 मार्च, 2009

धमा-चौकड़ी बंद करो

बात उस समय की है जब मैं गाजियाबाद में रहता था । हम चार दोस्तों ने एक तीन कमरे का मकान किराये पर लिया हुआ था । कहने को तो हम चार लोग थे पर ऐसा कोई समय नहीं होता था की जब हमारे दो-तीन (कभी इससे ज्यादा) बाहरी मित्र न आये हुए हो । जब लड़के होगे तो शोर , चिल्लाना, दौड़ना-भागना तो होगा ही।दिन भर तो हम बाहर ही रहते थे पर शाम होते ही सारे कमरे पर इकट्ठे हो जाते थे। पूरी रात हम उल्लू की तरह जागते हुए बिताते थे करीब सुबह चार बजे हम सोते थे (रात भर गाने, बाते और कभी-कभी पढ़ाई भी होती थी )।

अभी हमें एक सप्ताह ही हुआ था वहाँ रहते हुए की हमारे एक पडोसी आ गए एक दिन सुबह-सुबह बोले "आप लोग रात को शोर कम किया करिए, पड़ोस में परिवार भी रहता है "। उनकी बात को ध्यान में रख कर हम एक दिन तो शांत रहे पर , अगले दिन से फिर वही पुराने ढर्रे पर आ गए।

तीन दिन बाद हमारे पडोसी फिर आये, बोले "आप लोगो से कहा की रात को शोर मत किया किजीये, पर आप लोग मान नहीं रहे, सुधर जाइये वरना मकान खाली करवा देंगे"। इस बार उनकी बात सुन कर हमने अपने दोस्तों से बोल दिया की वो रात में न आया करे । तीन दिन तक सब ठीक रहा पर फिर हम वापस पुराने रूप में आ गए ।

इस बार हमारे पडोसी दो आदमियों को लेके आये । वो लोग सोसायटी के मेंबर थे, उन्होंने ने कहा की "आप लोग अपनी धमा चौकड़ी बंद नहीं करेगे , तो आप के मकान मालिक से बोल कर ये मकान खाली करवा देंगे"। इस बार हमने कसम खाई की अब कोई धमा चौकड़ी नहीं होगी रात को जल्दी सो जायेगे।

मन तो चंचल होता है कहाँ मानने वाला और रात को जागने की बुरी आदत भी हमें लग गयी थी, सुबह ४ बजे से पहले सोते ही नहीं थे, दो दिन बाद हम वापस पुराने तरीके से जीने लगे और सोच लिया की "इस बार अगर निकालने की धमकी देंगे तो कह देंगे निकलवा दिजीये, पर हम नही बदलेगे"।

१० दिन बाद हमारे पडोसी फिर आये । इस बार वो बड़े प्रेम से पूछ रहे थे कि " कैसे हो, कोई दिक्कत हो तो बताना"। हम सोच में पड़ गए हर बार आके शिकायत और गुस्सा करने वाले इतने प्रेम से कैसे बोल रहे है , ये ह्रदय परिवर्तन कैसे हो गया , उलटी गंगा कहाँ से बह निकली। हिम्मत करके हमने पूछ लिया "क्या बात है अंकल जी , आज आप बड़े प्यार से बात कर रहे हो "। तो वो बोले "मैं और मेरा परिवार एक सप्ताह के लिए बाहर गए थे, कल रात को ही आये, तो पता चला की पिछले हप्ते मोहल्ले में कई चोरिया हुई , जिस घर में कोई नहीं था , उनका तो सारा सामान ही ले के चले गए, पर हमारे घर से कुछ भी नहीं चुराया गया, इसका कारण आप लोग है, आप लोग रात भर जो शोर करते और जागते रहते हैं न उसी वजह से चोर हमरे घर नहीं आये।" फिर बोले "आप लोग जैसे चाहे रहिये, हाँ बस रात को तेज़ आवाज में गाने मत सुना करिए" ।

उस दिन हमें लगा की उल्लू की तरह रात में जागने से कम से कम किसी का तो भला हुआ । कुछ दिन बाद साथ के दो दोस्तों में किसी बात पर बहस हो गयी , बात हाथा-पाई पर आ गयी तो वो बोले की अब हम दोनों में से कोई एक ही यहाँ रहेगा, मैंने कहा जिसको हम बाहर निकालेगे उससे सम्बन्ध ख़राब हो जायेगे, तो ऐसा ही कि "आप दोनों लोग ही मकान छोड़ दीजिये"। कुछ दिन बाद मैंने भी मकान खाली कर दिया। लेकिन आज भी वो रात भर जागते रहना याद है ।

18 मार्च, 2009

इलाहाबाद से रायबरेली

मेरे गाँव में एक सुरेन्द्र जी है. वो अपने साथ घटी एक घटना अक्सर सुनाते हैं , वो मैं आज आप को सुनाने जा रहा हूँ .

करीब १५-२० साल पहले की बात है , सुरेन्द्र जी इलाहाबाद में रह कर सरकारी नौकरी की तैयारी करते थे . घर से ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे तो उन्होंने प्रयाग स्टेशन के पास एक कमरा किराये पर लिया हुआ था . कमरे के अलवा और कुछ नहीं था , ना रसोई और ना ही शौचालय.

दैनिक क्रिया-कर्म के लिए उन्हें बाहर जाना पड़ता था । घर के सामने से रेलवे लाइन जाती थी । जैसा की हमें पता ही है की रेलवे पटरी के किनारे स्थाई शौचालय के तौर पर प्रयोग किये जाते हैं ।सुरेन्द्र जी भी पटरी पार करके निपट आते थे

एक दिन सुबह उठे तो देखा पटरी पर एक गाड़ी खड़ी है , बहुत देर इंतजार करने पर जब वो गाड़ी नहीं गयी तो उन्होंने सोचा क्योंना डिब्बे के अन्दर से होते हुए उस पार चले जाये । लोटा ले के ये गाड़ी के अन्दर चढ़ गए तो उन्हें सामने डिब्बे में बना शौचालय दिख गया , मन में विचार किया की कहा बाहर जाये गाड़ी बहुत देर से खड़ी है इसी में निपट लेते हैं .

अभी वे शौचालय का प्रयोग कर ही रहे थे की गाड़ी चल दी . जब तक वो बाहर आकर उतरते तब तक गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली , गाड़ी कोई सुपर फास्ट थी जो इलाहाबाद से चलकर सीधे रायबरेली में रुकती थी (इलाहाबाद से रायबरेली १२० किमी दूर है ).

अब सुरेन्द्र जी परेशान लुंगी और बनियान पहने हाथ में लोटा लिए , डर रहे की कहीं टी टी आ गया तो क्या करेगे । करीब डेढ़-दो घंटे बाद वो रायबरेली पहुँच गए , अब कहाँ जाये इस हालत में .

उनके एक चचेरे भाई रायबरेली में रहते थे, उनका पता उन्हें याद था . पहुँच गए उनके घर, उनकी भाभी जी ने दरवाजा खोला और उन्हें इस हालत में देख कर उन्हें लगा की कुछ अनिष्ट हुआ है जिसकी सुचना देने ये हड़बडी में ऐसा लुंगी-बनियान में आ गए हैं और उन्होंने रोना शुरू कर दिया . रोने की आवाज सुन उनके भाई बाहर आये तो सुरेन्द्र जी ने पूरा हाल उन्हें सुनाया की किस तरह से वो इलाहाबाद से रायबरेली पहुँच गए .

उनके भाई ने उन्हें रोक लिया बोला "कल सुबह ट्रेन पकड़ के चले जाना आज यहीं रुक जाओ" .उधर शाम हो गई और सुरेन्द्र का कोई पता नहीं , घर का दरवाजा खुला हुआ (सुरेन्द्र जी ने सोचा था की अभी १० मिनट में आ जाऊंगा तो क्या ताला बंद करू )अगल-बगल वाले खोज करने लग गए जब वो कहीं नहीं मिले तो हुआ की कल सुबह चल के थाने में गुमशुदा की रिपोर्ट दर्ज़ करा देंगे .

अगले दिन सुबह जब सुरेन्द्र जी अपने कमरे पर पहुंचे तो उन्हें पता चला की अगर वो कुछ समय और देर से आते तो उनके गुम होने की रिपोर्ट थाने में लिखवा के उनके घर पर खबर कर दी जाती . जब उन्होंने अपने साथ हुई घटना सबको सुनाई तो सबका हँसते - हंसते बुरा हाल था , एक बोले अच्छा हुआ ट्रेन रायबरेली रुकती थी कही दिल्ली जा के रुकती तो वापस भी नहीं आ पाते.

17 मार्च, 2009

न्यूटन का ब्लॉग सिद्धांत

यदि सर आइज़क न्यूटन जी आज होते तो शायद उन्होंने ब्लॉग के लिए तीन नियम बताये होते

पहला नियम :

यदि कोई ब्लोगर ब्लॉग लिख रहा है तो वह लिखता ही रहेगा और टिपियाता रहेगा जब तक उसके लेख पर टिप्पणिया मिल रही है ।

दूसरा नियम :

लेख परिवर्तन की दर टिप्पणियों के समानुपाती होती है और उसकी (लेख परिवर्तन की) दिशा वही होती है जो टिप्पणियों की होती है।

तीसरा नियम :

प्रत्येक टिप्पणी के बराबर एवं विपरीत प्रतिटिप्पणी होती है।

और अंत में उन्होंने कहा होता

"ब्लॉग न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट हो सकता है , सिर्फ एक ब्लोगर से कुछ टिप्पणियों के नुकसान के साथ किसी अन्य ब्लोगर को हस्तांतरण हो सकता हैं."

16 मार्च, 2009

हनुमान जी और गणित

घर गया तो पता चला उ. प्र. बोर्ड की परीक्षा चल रही है. मेरे एक मित्र जो अध्यापक हैं रास्ते में मिल गए तो उनसे बात होने लगी तो उन्होंने एक किस्सा सुनाया।

एक लड़का था जो हाई स्कूल की परीक्षा में दो बार गणित विषय में फेल हो गया था । तीसरी बार जब वह गणित का पेपर देने जा रहा था तो सुबह - सुबह हनुमान जी के मंदिर में गया और हनुमान जी से बोला "हे बजरंग बली आज मेरा गणित का पेपर है, मैं दो बार से फेल हो रहा हूँ , इस बार भी पास होने की उम्मीद नहीं है, हे संकट मोचन मेरे को इस बार पास करवा दिजीये मैं आपको सवा किलो बेसन का लड्डू चढाऊंगा"।

परीक्षा कक्ष में पहुँच कर उसने हनुमान जी को याद किया और पेंसिल से सारे प्रश्न कापी में लिख दिए और नीचे लिखा "हे बजरंग बली मैने सारे सवाल पेंसिल से लिख दिए है , आप इसे मिटा के हल लिख दीजियेगा"।

जब परीक्षा का परिणाम आया तो इस बार भी वह गणित में फेल हो गया तो वह सीधे हनुमान जी के मंदिर में जाता है और बोलता है "क्या बजरंग बली , जब आप को भी गणित नहीं आती थी तो पहले बोलना था न , मैं किसी और भगवान से बोलता. एक साल और ख़राब कर दिए आप मेरा"

14 मार्च, 2009

होली में पहेली

१०० लोग की पहेली का सही उत्तर

१३ दोस्त + १५ रिश्तेदार + ७२ घरवाले = १०० लोग

सही जवाब दिया सतीश चंद्र सत्यार्थी जी ने , बहुत बहुत बधाईया

होली में गाँव गया तो मेरी 6 वर्ष की भतीजी मेरे पास आई और बोली "चाचा मेरे पहेली का जवाब दे सकते हो"। मैंने कहा पहेली पूछोतो उसने मुझसे तीन पहेली पूछी

- एक हाथी के सामने १२ केले रखे थे, उसने ११ खा लिए पर १२ वां नहीं खाया बताओ क्यों ?
मैंने कहा "केला ख़राब रहा होगा"। वो बोली गलत "१२ वां केला प्लास्टिक का था"

- एक हाथी के सामने १२ केले रखे थे, उसने एक भी नहीं खाया बताओ क्यों ?
मैंने कहा "सारे केले प्लास्टिक के होंगे"। वो बोली गलत "हाथी प्लास्टिक का था "

- एक बार हाथी और चींटी छुपम-छुपाई खेल रहे थे , चींटी जा के मंदिर में छुप जाती है लेकिन हाथी को पता चल जाता है की चींटी मंदिर में है, बताओ कैसे ?
मैंने कहा "हाथी ने चींटी को छुपते हुए देख लिया होगा "। वो बोली गलत "चींटी की चप्पल मंदिर के बाहर थी"।

फिर बोली लगता है आप पढ़े लिखे नहीं है जो मेरे एक भी पहेली का जवाब नहीं दे पाएअगली बार पढ़ के आईयेगा

05 मार्च, 2009

१०० लोग

बहुत - बहुत धन्यवाद आप का जो आपने ब्लॉग सार को पसन्द किया और अपना अमूल्य समय और सुझाव दियाकल सुबह मैं इस्पात शहर (जमशेदपुर) से आपने घर जौनपुर चला जाऊंगाघर पर कुछ आवश्यक कार्य और होली के कारण जाना पड़ रहा है वर्ष से मैं होली पर घर नहीं गया पर इस वर्ष ये मौका मिल गया . घर जाने पर शायद ब्लॉग लिखने और पढने का समय मिले

होली की हार्दिक शुभ कामनाये

मैंने अभी तक अपने लेख में किस्से-कहानी, कविता, हास्य रचना सबको शामिल किया पर कोई पहेली या सवाल नहीं किया तो मैं सोच रहा हूँ की आप लोगो से एक सवाल पूछ ही लिया जायेये सवाल बहुत पहले मुझसे किसी ने पूछा था और उसने मुझे सप्ताह का समय दिया था, तो मैं भी आप को सप्ताह का समय दे रहा हूँसवाल ये है कि

एक बारात में १०० लोग जाते है और उन्हें खाने के लिए १०० थालियाँ मिलती हैंसमस्या ये है कि बारात में लड़के के दोस्त कहते है कि वो थाली में खायेगेरिश्तेदार बोलते है कि वो थाली में खायेगे, तब लड़के के घरवाले बोलते हैं कि हमारे आदमीं एक थाली में खा लेगेऔर आश्चर्य कि बात वो १०० लोग १०० थालियों में शर्त के अनुसार खा लेते हैअब आप को बताना है कि लड़के के दोस्तों , रिश्तेदारों और घरवालो कि अलग-अलग संख्या क्या थी लेकिन ध्यान रहे किसी कि संख्या १० से कम नहीं थी

आप के उत्तर की प्रतिक्षा में ....

04 मार्च, 2009

ब्लॉग सार

* क्यों व्यर्थ लेख की चिंता करते हो ? टिप्पणी न मिलने से डरते हो ? कौन तुम्हारी टिप्पणियाँ छीन सकता सकता है ? टिप्पणी पाने के लिए टिप्पणियाँ करते हो, टिप्पणियाँ न पैदा होती है न मरती है !

* जो लिखा अच्छा लिखा, जो लिखोगे वो अच्छा ही लिखोगे , जो टिप्पणियाँ मिलेगी, वो भी अच्छी होगी ! तुम पुराने लेख का पशचाताप न करो , भविष्य के लेख की चिंता न करो, वर्तमान पढ़ा जा रहा है !

* तुम्हारा क्या गया ,जो तुम दुखी होते हो ! तुम क्या नया लाए थे ,जो लोगो ने नहीं पढ़ा , तुमने क्या लिखा था , जो टिप्पणियों का अभाव हो गया ?

* तुम केवल ब्लॉग खाता लेकर आये ! जो लिया, इसी (ब्लॉग ) से लिया ! जो दिया इसी को दिया !

* बिना लेख के आए , और बिना टिप्पणियों के चले गए !

* जो लेख आज तुम्हारा है, कल किसी और का था ! परसों किसी और का होगा ! तुम इसे अपना समझ कर टिप्पणियाँ ले रहे हो ! बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:ख का कारण है।

* परिवर्तन ही ब्लॉग का नियम है ! एक लेख में तुम सैकडो टिप्पणियों के स्वामी बन जाते हो , दुसरे लेख में तुम टिप्पणी विहीन हो जाते हो ! मेरा लेख ,उसका लेख ,मन से मिटा दो ,फिर ब्लॉग जगत तुम्हारा है , तुम ब्लॉग जगत के हो !

हे पार्थ
जब-जब अच्छे चिट्ठाकार आयेगे तब-तब मैं उनके लेख पढ़ कर उनपर टिप्पणियाँ करूँगा ।
समय आने पर मैंने उन चिट्ठाकारों का प्रोत्साहन और अनुसरण भी करूँगा .

विस्तृत गीता ज्ञान स्वामी समीरानन्द जी द्वारा तीन वर्ष पहले लिखा गया है उसे पढने के लिए यहाँ चटका लगाये .

03 मार्च, 2009

वो होली की सुबह

होली आने वाली है और मुझे उस आदमी का चेहरा फिर याद आने लगा है । वर्ष २००६ की बात है । मैं उस समय गाजियाबाद में रहता था । दो दिन बाद होली थी, मैं अपने घर जौनपुर जाने की तैयारी कर रहा था पर अचानक मेरे सर में तेज दर्द होने लगा और हल्का - हल्का बुखार भी होने लगा तो मैंने घर पर फ़ोन करके माता जी से बोला दिया की "तबियत ठीक नहीं है इसलिए कल सुबह यहाँ से चलूँगा "। जब बुखार बहुत तेज हो गया तो मैंने अपनी बुआ जी (जो गाजियाबाद में ही रहती थी ) को फ़ोन कर के बताया की मेरी तबियत ठीक नहीं है और अपने एक मित्र को मैंने अपने पास बुला लिया ।

मेरे मित्र ने आने के बाद मुझसे कहा की अगर तबियत ठीक नहीं है तो चलो डॉक्टर को दिखा लो । मैंने कहा "मेरे पास हिम्मत नहीं है की डॉक्टर के पास जाऊँ , तुम जाके दवा ले आओ "। रात को बुआ जी आयीं और उन्होंने बुखार उतारने के लिए ठंडे पानी की पट्टिया मेरे सर पर रखीं और बोला की अगर ज्यादा दिक्कत हो तो फ़ोन करना हम आ जायेगे ।

सुबह बुआ जी फिर आयीं मुझे देखने के लिए पर मुझे कुछ पता नहीं था , क्योंकि मैं बेहोश हो चुका था । इस बात का पता मेरे मित्र को भी नहीं था, उसे लगा की मैं सो रहा हूँ । बुआ जी ने पास के ही एक निजी चिकित्सालय में मुझे भर्ती करवा दिया पर कई घंटे बीत जाने पर जब मुझे होश नहीं आया और मेरे रक्त का दबाव कम होता जा रहा था , तो चिकित्सालय के मालिक ने एक वरिष्ठ चिकित्सक को बुला कर मुझे दिखाया । चिकित्सक ने देखा की मेरे शरीर पर कुछ दाग के निशान आ गए हैं तो उन्होंने बताया की ये मेनिन्गोक्समिया नामक बीमारी हो सकती है , यह बीमारी इस समय दिल्ली और आस पास के इलाको में फैली हुई है ।चिकित्सक के परामर्श पर मुझे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया ।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में मेरा इलाज शुरू हो गया, रात होते - होते मुझे होश आ गया । होश आने पर मैंने अपने आप को अस्पताल के एक कमरे में पाया ,कमरे में केवल तीन लोग थे । मैं बीच में था, मेरे दायीं तरफ एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था जो बेहोश था और बायीं और एक १०-१२ साल की बच्ची थी । कमरे में जो भी नर्स या डाक्टर आते मुहं पर हरे रंग की पट्टी बांध कर आते , मैंने नर्स से पूछा की मुझे क्या हुआ है और मेरे घर वाले कहा हैं ? नर्स ने बताया की मुझे मेनिन्गोक्समिया बीमारी है और यह बीमारी छूने , बोलने और किसी भी तरह सम्पर्क में आने पर दुसरे व्यक्ति को हो सकती है इसलिए आप के पास किसी को आने की अनुमति नहीं है । हाँ अगर कोई मिलना चाहे तो एंटीबैटिक दवा खा के आप से थोडी देर के लिए मिल सकता है। मैंने फिर पूछा की "मुझे यहाँ कब तक रहना होगा?" तो उन्होंने बताया की आप की टेस्ट रिपोर्ट कल शाम को आएगी उसके बाद ही कुछ पता चलेगा। उसने बताया की इस बीमारी में अगर २४ घंटे के अन्दर सही इलाज शुरू न हुआ तो शरीर के सारे अंग ख़राब होने लगते है और तीन दिन के अन्दर इन्सान की मौत हो जाती है ।

सुबह होने पर देखा माता जी और पिता जी घर से आ गए थे , बुआ जी ने बताया की "वो और मेरे कुछ मित्र कल से यही पर हैं लेकिन तुम्हारे पास किसी का ज्यादा देर तक रहना मना है इसलिए वो बाहर थे" । तभी मेरे बगल के लोगों से मिलाने उनके घर वाले आ गए थे । वह आदमी जो मेरे दायी ओर था उसे अब थोडा होश आ गया था और वह घर जाने की बात कर रहा था , वह कह रहा था की "अगले महीने उसकी बेटी की शादी है उसे बहुत काम है"। उसकी पत्नी उन्हें समझा रही थी पर वह कुछ सुनने को तैयार नहीं था । वह आदमी बात करते - करते चिल्लाने लगता था और फिर बेहोश हो जाता था ।

उसकी पत्नी ने बताया की वो मेरठ के रहने वाले है , उसकी दो लड़कियां है अगले महीने बड़ी की शादी है , तीन दिन पहले उसके पति को बुखार आया था तो वही के डॉक्टर से इलाज करवा रहे थे पर कल शाम को जब डाक्टर ने जवाब दे दिया तो यहाँ ले के आये हैं ।

शाम को मेरी रिपोर्ट आ गयी थी , डाक्टर ने बताया की कल सुबह मुझे सामान्य वार्ड में भेज दिया जायेगा क्योंकि मेरा इलाज सही समय पर शुरू हो गया इसलिए रक्त और त्वचा को छोड़ कर शरीर के किसी अंग को नुकसान नहीं हुआ है।

रात के करीब १० बज रहे थे , अचानक मेरे बगल लेटा आदमी उठ जाता है और मुझे बहुत काम करना है कह कर बाहर भागने लगता है , अस्पताल के कर्मचारी उसे पकड़ के वापस लाते हैं । उस आदमी को वो लोग चारपाई से बांध देते है जिससे वो दुबारा न भाग पाए । डाक्टर आके उसे देखते है और नर्स से कुछ सुई लगाने को कहते है । नर्स के सुई लगाने पर वह आदमीं फिर शांत हो जाता है ।

रात के करीब २ बज रहे होगे तभी एक तेज चिल्लाने की आवाज आती है , मैं उठ के देखता हूँ तो उस आदमी ने रस्सी तोड़ दी है और उठ के बैठ गया है , मैं सोचता हूँ की आखिर इसने ये रस्सी कैसे तोड़ दी , मैं उससे बात करने की कोशिश करता हूँ पर तभी वो वापस लेट जाता है । डाक्टर और नर्स आते हैं और उसको देखने के बाद डाक्टर बोलते है की "इसके घर वालो को बुला दो ये मर चुका है" । उसकी पत्नी आती है और अपने पति की लाश देख कर रोना शुरू कर देती है , तभी अस्पताल के कर्मचारी आते है और बोलते हैं की अभी ३ बज रहे हैं आप इनको लेके अभी निकल जाओ वरना सुबह होने पर होली होने के कारण कोई गाड़ी मेरठ नहीं जा पायेगी । मेरे आँखों के सामने उस आदमी को सफ़ेद कपडे में सिल के एक बड़े प्लास्टिक बैग में डालके बाहर लेके चले जाते हैं ।

मुझे अपनी शंका का समाधान मिल जाता है की वो रस्सी उसने नहीं तोड़ी बल्कि वो उसकी प्राण वायु थी जो उसे छोड़ के जा रही थी । होली आने वाली है और मुझे उस आदमी का चेहरा फिर याद आने लगा है।