tag:blogger.com,1999:blog-7827060913832420994.post8839000177491241651..comments2023-05-30T13:32:03.360+05:30Comments on आलोक: सुख-दुःख (एक सवाल )आलोक सिंहhttp://www.blogger.com/profile/00082633138533183604noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-7827060913832420994.post-13101522889058293202009-02-11T20:02:00.000+05:302009-02-11T20:02:00.000+05:30व्यवहारिक सोच के साथ रोचक विषय है। इन दोनों परिवार...व्यवहारिक सोच के साथ रोचक विषय है। इन दोनों परिवारों की विवेचना आप इस तरह कर सकते हैं कि हर सुख के साथ कुछ दुख भी जुडा है। दान बहादुर के बच्चों के नसीब में शहरी सुख था सो वे उसे भोग रहे हैं। अपना जीवन यापन कर रहे हैं। निगेटिव बात ये हुई कि मां बाप गाँव में अकेले रह गये। दूसरी ओर समर बहादुर के यहाँ के बच्चों के मन में यह अभिलाषा तो है कि कहीं कमा खा लेते तो वह भी शहरी सुख लेते। कहां इधर गांव में पडे-पडे सड रहे हैं। और आज नहीं तो कल समर बहादुर के पोतों के मन में यह बात जरूर उठेगी कि काश उनके बाप यानि समर बहादुर के बेटे भी शहरों में होते तो उन्हें भी नौकरी-चाकरी, बोल-चाल में आगे चलकर सुभीता हो जाता। तो आलोक जी, कुल मिलाकर जो जहां है उसे वहीं कुछ न कुछ कमी और अधिकता को झेलना पडेगा। वैसे आज हर दूसरे परिवार में यह घटना और इससे जुडे पात्र देखने में मिलेंगे। <BR/> अच्छी पोस्ट।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7827060913832420994.post-52328593508326370222009-02-04T05:12:00.000+05:302009-02-04T05:12:00.000+05:30मजबुरी होती है, मै भी अपने मां बाप को छोड कर, या य...मजबुरी होती है, मै भी अपने मां बाप को छोड कर, या यु कहे की उन की मर्जी से इतनी दुर आ गया, अब ना तो मै हमेशा वापिस जा सकता हुं, ना मां बाप ही मेरे पास आ सकते है, अब इस मै किस का कसूर?? आज के समय मै हम सब मजबुर है, उन की किसमत ही है जो सब इकट्टे रहते हे, लेकिन दोनो के अलावा जो भाई गाव मै रहता था, उस की तो कोई मजवुरी नही, उसे तो मां बाप के पास रहन चाहिये था ??<BR/>धन्यवाद आप ने बहुत सुंदर लिखा.राज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7827060913832420994.post-75534618613418633992009-02-03T21:27:00.000+05:302009-02-03T21:27:00.000+05:30मित्र सोचने पर मजबूर कर दिया. विषय बहुत ही रोचक लग...मित्र सोचने पर मजबूर कर दिया. विषय बहुत ही रोचक लगा.<BR/>धन्यवादravihttps://www.blogger.com/profile/00113780765659293186noreply@blogger.com