28 फ़रवरी, 2009

नक़ल के लिए अक्ल चाहिए

अक्सर हम देखते हैं की कुछ लोग दूसरो की नक़ल कर के उनके जैसा बनना चाहते है पर वो वैसा कर नहीं पाते उसका कारण ये है की नक़ल के लिए भी अक्ल चाहिए । चलिए मैं आप को एक कहानी सुनाता हूँ । कहानी बहुत पुरानी है शायद आपने सुना भी होगा।

एक ठाकुर साहब अपने छोटे भाई को ले के अपनी ससुराल जाते हैं। ससुराल में ठाकुर साहब की बड़ी खातिरदारी होती है। रात को जब खाने का समय होता है तो वो बोलते है की "हम भोजन नहीं करेगे बस थोडा दही मिल जाये तो खा के सो जायेगे" । दामाद की बात का पालन होता है उनके लिए दही आ जाती है । खाने के बाद बोलते है हम घर में नहीं सोयेगे बाहर एक चारपाई लगवा दी जाये और और एक चद्दर ओढ़ने के लिए दे दी जाये । सुबह उठके ठाकुर साहब कुएं पर जाते है और स्नान करते है । नाश्ता करके वो वापस अपने घर आ जाते है । छोटा भाई जो उनके साथ गया होता ये सारी बाते याद कर लेता है ।

कुछ महीने बाद वो भाई अपने ससुराल जाता है । रात को खाने में वो दही मागता है तो उसकी सास बोलती है "दामाद जी हमने आप के लिए बहुत सारे व्यंजन बनाये है आप दही क्यों खाना चाहते है"। वो कहता है की "मुझे केवल दही ही चाहिए "। दही खाने के बाद वो ठाकुर साहब वाली बात कहता है की "हम घर में नहीं सोयेगे बाहर एक चारपाई लगवा दी जाये और और एक चद्दर ओढ़ने के लिए दे दी जाये" । सब मना करते है लेकिन वो नहीं मानता । फिर वो सुबह उठ के कुएं के ठंडे पानी से नहा लेता है और बहुत ज्यादा बीमार पड़ जाता है ।

ठाकुर साहब को जब ये बात पता चलती है तो उसके पास जाते है और कहते हैं की "तुमने सब कुछ याद रक्खा और उसकी नक़ल की पर ये भूल गए की जब मैं अपनी ससुराल गया था तो गर्मी के दिन थे और इस समय सर्दी का समय है "। बहुत इलाज के बाद उसकी की जान बचती है ।

तो आप जब भी किसी की नक़ल करे तो अपनी बुद्धि का प्रयोग अवश्य करे अन्यथा आप मुसीबत में पड़ सकते हैं ।

27 फ़रवरी, 2009

सुनो सब की करो अपने मन की

अब ऐसा नहीं की मन जो कहे आप वही करने लगे , मन बड़ा चंचल होता है उसकी सुने लेकिन निर्णय दिमाग को करने दे ।आप ने महसूस किया होगा जो काम आप मन लगा के करते है उस काम को करने में आप थकान,आलस्य नहीं महसूस करते बल्कि आप बड़े उत्साह और तेजी के साथ उस काम को करना चाहते हैं पर जब कोई काम बिना मन के किया जाता है तो थोडा ही करने के बाद आप आलस्य और थकान महसूस करने लगते हैं और उस काम को और करने की इक्क्षा ख़त्म होने लगती है, हाँ अगर कार्य करते हुए अगर कुछ रोचक हो जाता है तो बात अलग होती है ।

हाँ तो मैं बात कर रहा था "सुनो सब की करो मन की" तो अब आप को एक कहानी सुनाता हूँ शायद ये कहानी आप ने पहले भी सुनी या पढ़ी होगी .

एक बार एक बाप - बेटा खच्चर पे सामान ले के कही दूर जा रहे थे , थोडी दूर जाने पर बाप ने बेटे से कहा की तुम खच्चर पे बैठ जाओ मैं पैदल चलता हूँ । बेटा खच्चर पे बैठ जाता है तभी उधर से कुछ लोग गुजरते है और कहते हैं " कैसा नालायक बेटा है खुद खच्चर पे बैठा है और बाप पैदल चल रहा है "। बेटा उनकी बात सुनता है और खच्चर से उतरकर अपने पिता को बैठा देता है । थोडी दूर जाने पर कुछ और लोग मिलते है और बोलते है "कैसा पिता है खुद आराम से खच्चर पे बैठा है और बेटे को पैदल चला रहा है "। बाप जब ये सुनता है तो वो अपने बेटे को भी खच्चर पे बैठा लेता है . थोडा और आगे जाने पर कुछ लोग मिलते है और कहते है "अरे तुम कैसे इन्सान हो दोनों इस खच्चर पे बैठे हो ,बेचारे खच्चर की जन लोगे क्या ".ऐसा सुन कर दोनों बाप बेटे उतर कर पैदल चलने लगते है . रस्ते में फिर उन्हें एक आदमी मिलता है और बोलता है "कैसे पागल है, खच्चर होते हुए भी पैदल चल रहे हैं ". अब बाप-बेटे का दिमाग ठनक जाता है की कैसे लोग है दुनिया में हर चीज पर अलग - अलग राय देते हैं , किसी भी तरह जीने नही देते . फिर बाप बोलता है बेटा इस संसार में सुनना सबकी पर करना वही जो तुम्हारा दिल और दिमाग कहे .

हमें अक्सर अपने आस-पास कुछ लोग मिल जाते है जो मुफ्त में सलाह देते है पर उनकी सलाह कितनी सही है ये तो हमें ही जाचना होगा . तो इसलिए सुनिए सब की पर करिए अपने मन की . जब आप कोई काम अपने मन से करेगें तो उसकी सफलता और असफलता पर केवल आप का अधिकार होगा .

"उठो , जागो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो तब तक रुको नहीं " विवेकानंद


26 फ़रवरी, 2009

विश्व के कुछ देशो के पुलिस के वाहन

पुलिस वाहन स्विट्जरलैंड
जर्मनी
आस्ट्रिया
चाइना
पाकिस्तान
भारत
और आप कहते है की पुलिस काम नही करती, काम तो हो रहा है सिपाही दरोगा साहब को कंधे पे लेके घर जा रहा हैं .अब क्या जान लेगे ?

जिन्दगी की इस दौड़ में

जिन्दगी की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है ?
जब यही जीना है दोस्तों तो फिर मरना क्या है ?

पहली बारिश में छाते की फ़िक्र है
भूल गए वो भीगते हुए टहलना?

धारावाहिक के किरदारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछने की फुर्सत नहीं है ?

अब घास पे नंगे पाव टहलते क्यों नहीं ?
१५० चॅनल फिर भी दिल बहलते क्यों नहीं ?

इन्टरनेट से दुनिया के तो सम्पर्क में है ,
लेकिन पड़ोस में कौन रहता है ख़बर तक नहीं .

मोबाइल , लैंड लाइन सब की भरमार है ,
लेकिन जिगरी दोस्त तक पहुचे ऐसे तार कहा है ?

कब डूबते हुए सूरज को देखा था ?
कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है ?

सुबह उठ के कब सुना था चिडियों का चहकना ,
अलार्म के बजाने पर सुबह का पता चलता है ।

कब खाया था आराम से बैठ के भूल गए .
वो माँ के हाथो से खाना याद है ?

वो दोस्तों के साथ दिन गुजारते थे .
आज खुद के लिए वक़्त नहीं है .

तो दोस्तों जिन्दगी की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है
जब यही जीना है तो फिर मरना क्या है ?

25 फ़रवरी, 2009

आइये थोड़ा मुस्करा ले

मै शेर सुनाता हूँ गौर से सुनिए , मै शेर सुनाता हूँ गौर से सुनिए , मुझे नहीं आता किसी और से सुनिए ....

कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को नुक्लियर पावर का ज़माना है , बम्ब से उड़ा दो साले को ...

फ़ोन करता हूँ तो इतराती बोहत हो क्या करुँ दिल को लुभाती बोहत हो सोचता हूँ तुम्हे डिनर पर बुलाऊं पर क्या करू ? तुम खाती बोहत हो .

सूरज हुआ मद्धम चाँद भी चलने लगा , मैं ठहरा रहा ज़मीं चलने लगी सजना क्या यही प्यार है ??? पागल ,यह प्यार नहीं , भूकंप है !! भाग

टीचर संता से पूछता है " तुम कहा पैदा हुए ?" संता : तिरुवनंतपुरम में . टीचर : लिख के दिखाओ ? संता : (सोचने के बाद ) मैं सोच रहा हूँ की मैं कटक में पैदा हुआ था .

७ साधु , ७ चटाई पर ध्यान लगाकर बैठे थे . एक लड़का आता है और सबसे बुजुर्ग साधु को प्रणाम कर पूछता है... "महाराज लड़की नहीं पट रही है , क्या करू ...?" वो साधु सबसे छोटे साधु को पुकारता है और कहता है "छोटू एक और चटाई लगा दे बेटा ...."

एक अनुरोध अंतरजाल के इस जगत से

आज कुछ दिनों से इस ब्लॉग जगत में चारो ओर ब्लॉग की रूप-रेखा , सामग्री , अभिव्यक्ति , आलोचना , कल्पना और आकार -प्रकार और जाने क्या - क्या बाते हो रही है . कुछ बाते तो ऐसी हैं जो मेरे समझ से परे हैं पर कुछ बाते ऐसी है जो समझ में आते हुए भी समझ में नहीं आ रही है ,कोई लिख रहा है की उसे अब पता चल की वो एक ब्लोगर है तो कोई अपने आप को भुनगा बता रहा है , तो किसी के फालोवर लापता हो गए हैं , ये चारो ओर क्या हो रहा है मुझे समझ में नहीं आ रहा है .

इसका कारण ये है की मैं वो हूँ जो अक्ल बड़ी या भैंस में ,भैंस को बड़ा कहता हूँ . अक्ल दिखती नहीं और भैंस को आप बिना चश्मे के भी देख लोगे . अक्ल रहती कहा है दिमाग में और दिमाग रहता है सर में और सर कितना भी बड़ा हो भैंस से तो बहुत छोटा होता है . अब मैं ठहरा भैंस को बड़ा मानने वाला और लोग यहाँ बात कर रहे हैं दिमाग की तो अगर इतनी ऊची और बड़ी बाते होगी तो मेरे समझ से बाहर की बात होगी .

मैं ठहरा लप्पु-छन्ना(निम्न कोटि का ब्लोगर ) और चारो ओर चर्चा करने वाले महान और उच्च कोटि के धुरंधर लेखक और जो नहीं थे वो दूसरो की संगत में आ के बन गए . अब मैं इस जगत में नया और भैंस पुजारी ब्लोगर इन लोगो की बात कैसे समझ सकता हूँ .

ले दे के एक काम आता था दुसरे के लेखो पर टिप्णी पर अब उसके लिए भी दिमाग लगाना पड़ेगा सुना है अब आप कि टिप्णी पर कोई भी आप को अदालत में घसीट सकता है . लिखना तो आता नहीं था और पढ़ना भी आसान नहीं . मेरे साथ तो वो कहावत हो रही है " जहाँ जाये भूखा वहां पड़े सुखा ". पुराने लोग मठाधीश के पद पर आसीन है और उनके साथ बहुमत ज्यादा है और हम ठहरे निर्दलीय तो लगता है हमारी जमानत जप्त हो के ही रहेगी .

मेरा अनुरोध है पुराने और ज्ञानी लेखक और विचारको से कि इस भागम-भाग और परिवर्तन के दौर में मुझ जैसा ब्लोगर कही गुम न हो जाये. इसलिए कृपया इस जगत को किसी सीमा परिधि में न बाधें, और सब को अपनी इक्क्षा से अपने आप को प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करे .

24 फ़रवरी, 2009

मेरी चाहत

ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,

ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,

कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,

उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,

मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,

उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,

अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,

यूँ तो 'मित्र' का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक यार चाहिए.

कालिया की गब्बर से विनती

गब्बर: कितने आदमी थे?

कालिया : सरकार दो..

गब्बर: मुझे गिनती नहीं आती है....दो कितने होते हैं?

कालिया : सरकार दो ,एक के बाद आता है..

गब्बर: और दो से पहले ?

कालिया : दो के पहले एक आता है..

गब्बर: (गुस्से से) तोह बीच में कौन आता है??

कालिया : बीच में कोई नहीं आता है..

गब्बर: तोह फिर दोनों एक साथ क्यों नहीं आते..?

कालिया : दो एक के बाद ही आता है , क्योकि दो एक से बड़ा है...

गब्बर: दो एक से बड़ा है ,कितना बड़ा है..?

कालिया : दो एक से एक बड़ा है..

गब्बर: दो एक से एक बड़ा है तोह ,एक एक से कितना बड़ा है?

कालिया : सरकार मैंने आप का नमक खाया है, मुझे गोली मार दो...

23 फ़रवरी, 2009

ॐ नमः शिवाय ( शिव महिमा )


नमः शिवाय

एक बार पार्वतीजी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक गांव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकार को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।

शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़फ रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान् शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।

21 फ़रवरी, 2009

असम्भव कुछ भी नही

असम्भव कुछ भी नही बस आप में इक्क्षा शक्ति होनी चाहिए आप में कुछ खास है बस आप को उसे बहार निकलना है आप एक आम इन्सान से एक महान बन सकते है

२१ साल पहले आपने दादी के घर

आज एक आम कुर्सी से विश्व की सबसे बड़ी कुर्सी पर .

सोचना अभी से शुरू करिये कल बहुत देर हो जायेगी .

19 फ़रवरी, 2009

कुछ रोचक वाक्य

मरने के तीन आसान रास्ते

१- रोज एक सिगार पियो - १० साल पहले मरो।
२- रोज शराब पियो - ३० साल पहले मरो।
- किसी से सच्चा प्यार करो - आप रोज मरोगे।

एक मुर्ख आदमी औरत से कहता है चुप रहो , पर एक बुद्धिमान आदमी कहता है ......
तुम बहुत सुंदर लगती हो जब तुम्हारे होंठ जुड़े होते हैं ।

एक आसान तरीका शराब छोड़ने का ..

शादी से पहले - जब आप दुखी हो तब पियो ।
शादी के बाद - जब आप खुश हो तब पियो ।

तीन सबसे तेज सूचना देने के माध्यम...

1. टेलीफोन

2. टेलिविज़न

3. टेल टू वूमन

और ज्यादा तेज प्रसारण के लिए - "किसी से मत कहना"

सरकार ने एक पुरूष के एक से अधिक विवाह पर रोक क्यों लगा रक्खी है .
क्योंकि कानून के अनुसार , आप एक गलती की सज़ा एक बार से ज्यादा नही पा सकते .

हम किसी की गलती पर उसे बधाई कब देते है ?
उस की शादी पर .

शादी में कुवारे और शादी-शुदा लोग क्यों नाचते है ?
कुवारे "इस की हो रही है हमारी भी होगी "
शादी-शुदा "एक और फंसा "

18 फ़रवरी, 2009

होत न आज्ञा

आज सुबह जब मैं हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा था तो मेरे एक मित्र ने कहा आप को पता है की हनुमान चालीसा में लिखा हुआ है कि "बिना पैसे के कोई आज्ञा / आदेश नही होता "। मैंने कहा नही मैंने आज तक नही पढ़ा, तो वो बोले "आप ने कभी ध्यान से नही पढ़ा" ।

मैंने कहा "मैं रोज हनुमान चालीसा का पाठ करता हूँ और मुझे कंटस्थ है "।

वो बोले नही आप ने बस पढ़ा है लेकिन कभी अर्थ पर ध्यान नही दिया ।


मैंने कहा "मुझे हर पंक्ति याद है और किसी भी पंक्ति में ऐसा कुछ नही है "।


वो बोले "आप ने एक पंक्ति पर ध्यान नही दिया "। मैंने कहा "कौन सी पंक्ति "।


"होत न आज्ञा बिनु पैसारे" एकदम सरल अर्थ है "बिना पैसे के कोई आज्ञा नही होती, अगर आप के पास पैसा नही है तो कोई भी आप कि बात नही सुनेगा"।


काफी सोचने के बाद मैंने कहा "कह तो आप सही रहे है लेकिन हम मानेगे नही " तो वो बोले "ठीक है आप मनो या न मनो आप के मानने या न मानाने से अर्थ बदल थोड़े ही जाएगा "।

लोग किसका सम्बन्ध किससे बना दे कुछ पता नही । अब आप भी सोच के देखिये "होत न आज्ञा बिनु पैसारे "?

16 फ़रवरी, 2009

अति का भला

मेरे एक मित्र है वो बेचारे अपने बोलने से परेशान हैं कई बार वो कुछ ऐसा बोल जाते है जो सामने वाले को बुरा लग जाता है । कुछ दिनों से वे चुप रह रहे थे पर अचानक कल उन्होंने अपना मुंख खोल दिया और सामने वाले से लडाई होते-होते बची कारण ये था की काफी दिनों से चुप रहने के कारण उनके पास बहुत सारी बातें इकट्ठी हो गई थी जो कल उन्होंने एक बार में ही बाहर निकल दी और सामने वाला इस बात के लिए तैयार नही था बाद में मैंने उनसे कहा की मालिक
"अति का भला बोलना, अति की भली चुप ।
अति का भला बरसना, अति की भली धूप"
वो बोले कह तो आप सही रहे हो "लेकिन क्या करे बोलते समय मैं भूल जाता हूँ की मेरी बात सामने वाले को बुरी लग जायेगी ।"


अक्सर ऐसा होता है की हम बोलते समय ये भूल जाते है की सामने वाला इस बात से नाराज़ हो सकता है, चाहे वो बात सच ही क्यों न हो। इससे बचने का एक ही उपाय है की हम थोड़ा सा कम बोले और बोलने से पहले एक बार सोच ले ।

चाणक्य ने भी कहा है
"अति छबि ते सिय हरण भौ, नशि रावण अति गर्व ।
अतिहि दान ते बलि बँधे, अति तजिये थल सर्व ॥"
अर्थात
"अतिशय रूपवती होने के कारण सीता हरी गई । अतिशय गर्व से रावण का नाश हुआ ।
अतिशय दानी होने के कारण वलि को बँधना पडा । इसलिये लोगों को चाहिये कि किसी
बात में 'अति' न करें ॥"

14 फ़रवरी, 2009

मुश्किल है अपना मेल प्रिये

पिछले वर्ष १४ फ़रवरी को ये रचना मुझे किसी ने मेल की थी, आज मैं उसी रचना को आप के सामने रख रहा हूँइसके रचनाकार कौन है ये भेजने वाले को भी पता नही था, अगर आप को पता हो तो जरूर बताइयेगा धन्यवाद .

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

तुम ऍम ऐ फर्स्ट डिविजन हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

तुम फौजी अफसर की बेटी , मैं तो किसान का बेटा हूँ
तुम रबडी खीर मलाई हो, मै तो सत्तू सपरेटा हूँ
तुम ऐ-सी घर में रहती हो, मैं पेड के नीचे लेटा हूँ
तुम नई मारुती लगती हो, मै स्कूटर लम्ब्रेटा हूँ
इस कदर अगर हम छुप छुप कर, आपस में प्यार बढ़ाएँगे
तो एक रोज तेरे डेडी, अमरीश पुरी बन जाएँगे

सब हड्डी पसली तोड़ मुझे वो भिजव देंगे जेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये
तुम दीवाली का बोनस हो, मै भूखों की हड़ताल प्रिये
तुम हीरे जडी तश्तरी हो, मैं एल्युमिनिअम का थाल प्रिये
तुम चिकन सूप बिरयानी हो, मैं कंकड वाली दाल प्रिये
तुम हिरन चौकड़ी भरती हो, मै हू कछुए की चाल प्रिये
तुम चंदन वन की लकड़ी हो, मैं हू बबूल की छाल प्रिये

मै पके आम सा लटका हूँ मत मारो मुझे गुलेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

मै शनी देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कन्चन काया हो
मै तन से मन से कांशी राम, तुम महा चंचला माया हो
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ
तुम राज घाट का शांति मार्च, मै हिन्दू मुस्लिम दंगा हूँ
तुम हो पूनम का ताजमहल, मै काली गुफा अजन्ता की
तुम हो वरदान विधाता का, मैं गलती हूँ भगवंता की

तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलमठेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

तुम नई विदेशी मिक्सी हो, मै पत्थर का सिलबट्टा हूँ
तुम ए. के. सैतालिस जैसी, मैं तो एक देसी कट्टा हूँ
तुम चतुर राबडी देवी सी, मै भोला भाला लालू हूँ
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मै चिड़िया घर का भालू हूँ
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वीपी सिंह सा खाली हूँ
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं हवलदार की गाली हूँ

कल जेल अगर हो जाये तो, दिलवा देना तुम ‘बेल’ प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितार होटल हो
मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम ‘रेड लेबल’ की बोतल हो
तुम चित्रहार का मधुर गीत, मै कृषि दर्शन की झाड़ी हूँ
तुम विश्व सुन्दरी सी कमाल, मैं तेलिया छाप कबाड़ी हूँ
तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलीफोन वाला चोगा
तुम मछली मनसरोवर की, मैं हूँ सागर तट का घोंघा

दस मंजिल से गिर जाऊँगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये

तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्ष की लचारी हूँ
तुम हो ममता, जयललिता सी, मैं कुआँरा अटल बिहारी हूँ
तुम तेंदुलकर का शतक प्रिये, मैं फालो-ऑन की पारी हूँ
तुम गेट्ज, मारुती , सैंट्रो हो, मैं लेलैंड की लारी हूँ

मुझको रेफ्री ही रहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये……

13 फ़रवरी, 2009

जीवन में विकल्प जरुरी है

एक बार एक राजा ने अपने दो सैनिको को मृतुदंड की सजा सुनाई. तो पहले सैनिक ने राजा से बहुत विनती की कि "उसे मृतुदंड न दिया जाए" पर राजा ने उसकी बात नही सुनी। तब दुसरे सैनिक ने राजा से कहा "महाराज मैं एक ऐसी विद्या जानता हूँ ,जिससे आप का घोड़ा उड़ने लगेगा"(उसे पता था की राजा को अपने घोडे से बहुत प्रेम है). राजा ने कहा कि "मैं कैसे मानु की तुम सही बोल रहे हो". सैनिक बोला "महाराज आपने ने मुझे मृतुदंड दिया है अगर मैं मर गया तो ये विद्या मेरे साथ खत्म हो जायेगी और वैसे भी एक मरने वाला आदमी कभी झूठ नही बोलेगा".राजा बोला "ठीक है मैं तुम्हे एक वर्ष का समय देता हूँ अगर तुमने मेरे घोडे को उड़ना सिखा दिया तो तुम्हे जीवन दान मिल जाएगा अन्यथा तुम्हे मौत मिलेगी". सैनिक इस बात पे तैयार हो गया .
राजा के जाने के बाद पहले सैनिक ने दुसरे से पूछा "क्या तुम्हे वाकई में ऐसी विद्या आती है ". दुसरे ने बोला "नही! मुझे ऐसी कोई विद्या नही आती ". पहले ने फिर पूछा "फ़िर तुमने राजा से झूठ क्यों बोला की तुम उनके घोडे को उड़ना सिखा दोगे". दूसरा सैनिक बोला "अगर मैं ऐसा नही बोलता तो मैं आज ही मार दिया जाता पर अब मेरे पास एक वर्ष का समय है ". पहले ने फिर पूछा "लेकिन एक वर्ष बाद जब तुम घोडे को उड़ना नही सिखा पायोगे तो तुम्हे मार दिया जाएगा". दूसरा सैनिक बोला " मेरे पास अब चार विकल्प है "
१ . एक वर्ष के अन्दर राजा मर सकता है .
२. एक वर्ष के अन्दर घोड़ा मर सकता है .
३. मैं भी मर सकता हूँ .
४. शायद मैं घोडे को उड़ना सिखा ही दूँ ?
पर तुम्हारे पास केवल एक ही विकल्प है कि "आज तुम्हे मार दिया जाएगा".


इस प्रसंग से मैं ये कहना चाहता हूँ कि आप जब भी कोई काम करे तो कम से कम एक से ज्यादा विकल्प आप के पास होने चाहिए अन्यथा आप मुसीबत में पड़ सकते हैं .

12 फ़रवरी, 2009

गुरु - चेला

एक ज्योतिषी और उसका शिष्य एक जहाज पर यात्रा कर रहे थे। अचानक जोरदार तूफान गयालगा अब जहाज डूब ही जाएगा। लोगों में चीखपुकार मच गई। सब जान बचाने के लिए इधर उधर भागने लगे पर जाएं तो जाएं कहां तब ज्योतिषी ने उन लोगों से कहा कि घबराओ नहीं यह जहाज नहीं डूबेगा। तभी किसी ने ज्योतिषी से पूछा कि उसे कैसे मालूम की जहाज नहीं डूबेगा। उसने बताया कि वह एक ज्योतिषी है और उसे मालूम है की यह जहाज नहीं डूबेगा। लोगों में घबराहट कुछ कम हुई तूफान गुजर गया और किस्मत से जहाज नहीं डूबा। फिर क्या था, लोगों ने ज्योतिषी को पैसों से लाद दिया

जब वे लोग मंजिल पर पहुंच गए तो शिष्य ने पूछा - महाराज, मैं आपका चेला हूं। बीस साल से आपके साथ हूं। मुझे मालूम है की आप इतने ज्ञानी नहीं हैं कि यह जान सकें कि जहाज डूबेगा या नहीं। फिर आपने यह कैसे जाना की जहाज नहीं डूबेगा ?

ज्योतिषी ने जवाब दिया - मैंने कुछ नहीं जाना मैंने तो बस तुक्का मारा था।

अब शिष्य को गुस्सा गया। बोला - आपने तुक्का मारा था ? अगर जहाज डूब जाता तो ?

- तो कुछ नहीं फिर वहां कुछ पूछने के लिए बचता ही कौन ?

10 फ़रवरी, 2009

जिंदगी है छोटी

जिंदगी है छोटी , हर पल में खुश रहो ...

ऑफिस में खुश रहो , घर में खुश रहो ...
आज पनीर नही है , दाल में ही खुश रहो ...
आज जिम जाने का समय नही , दो कदम चल के ही खुश रहो ...

आज दोस्तों का साथ नही , टीवी देख के ही खुश रहो ...
घर जा नही सकते तो, फ़ोन कर के ही खुश रहो ...
आज कोई नाराज़ है , उसके इस अंदाज़ में भी खुश रहो ...

जिसे देख नही सकते उसकी आवाज़ में ही खुश रहो ...
जिसे पा नही सकते उसकी याद में ही खुश रहो ...
लैपटॉप न मिला तो क्या , डेस्कटॉप में ही खुश रहो ...

बिता हुआ कल जा चुका है , उससे मीठी यादें है , उनमे ही खुश रहो ...
आने वाले पल का पता नही, सपनो में ही खुश रहो ...
हँसते हँसते ये पल बीतेंगे , आज में ही खुश रहो...

नए संदेश पर टिप्पणी नही मिली, पुरानी टिप्पणी को देख कर खुश रहो ...
अपने ब्लॉग पर कोई नही आया, दुसरे के ब्लॉग पर जा के रचनाओ को पढ़ के खुश रहो ..
किसी ने आप के ब्लॉग पे टिप्पणी नही की तो क्या , आप दूसरो की रचनाओ पर कर के खुश रहो ..

जिंदगी है छोटी , हर पल में खुश रहो

09 फ़रवरी, 2009

भारतीय माँ

एक नवयुवक ने अपनी माँ से बोला की उसे किसी से प्यार हो गया है और वो उससे शादी करना चाहता है .

उसने कहा की कल वह तीन लड़कियों को ले के घर आएगा और उसे बताना होगा की वो किससे शादी करना चाहता है.

माँ तैयार हो गई .

अगले दिन वो तीन सुंदर लड़कियों को ले के घर आया और उन्हें सोफे पे बिठाने के बाद उनसे थोडी देर बात की फिर उसने अपनी माँ से पूछा की "बताइए की मैं किससे शादी करना चाहता हूँ "?

माँ तुंरत बोली "वो जो दायीं और बैठी है ".

"एकदम सही माँ , तुम्हे कैसे पता चला की मैं उससे शादी करना चाहता हूँ "?
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भारतीय माँ बोली "वो मुझे पसंद नही है ".

06 फ़रवरी, 2009

तुम्हारे साथ क्या हुआ

एक सवेरे एक मरीज़ डॉक्टर के पास आता है और बोलता है की उसे पीठ में बहुत ज्यादा दर्द है । डॉक्टर उसे देखता है और पूछता है कि "ये दर्द कैसे शुरू हुआ". मरीज़ बोलता है कि "जैसा आप जानते है कि मैं एक नाईट क्लब में काम करता हूँ ?आज सुबह मैं जल्दी घर चला गया , मुझे आपने घर के अन्दर से कुछ आवाज आती हुई सुनाई दी. जब मैं अन्दर गया तो मुझे पता चल गया कि अन्दर मेरी पत्नी के साथ कोई था क्योंकि बालकनी का दरवाजा खुला हुआ था. मैं बालकनी की तरफ़ दौड़ के गया तो मुझे कोई दिखाई नही दिया. तब मैंने नीचे देखा तो एक आदमी कपड़े पहनता हुआ भागा जा रहा है . मैंने पास में रक्खा फ्रिज उठाया और उसके ऊपर फेंक दिया तभी से ये दर्द है."

तभी दूसरा मरीज़ आता है , उसे देख के ऐसा लग रहा था की उसके ऊपर से कार गुज़र गई है .डॉक्टर बोलता है "मेरे पहले मरीज़ की हालत ख़राब है लेकिन तुम्हारी तो बहुत ज्यादा बिगड़ी हुई है . तुम्हारे साथ क्या हुआ ?" वह बोला "जैसा आप जानते है की मैं बहुत दिनों से बेरोजगार था , आज मेरी नौकरी का पहला दिन था , मैं रात को घड़ी में अलार्म लगाना भूल गया सुबह मेरी आंख देर से खुली तो मैं जल्दी में कपडे पहनता हुआ घर से निकल रहा , आप विश्वास नही करोगे किसी ने मेरे ऊपर फ्रिज फ़ेंक दिया".

तभी तीसरा मरीज आता है , उसकी हालत उन दोनों से ख़राब दिख रही थी . डॉक्टर चकरा जाता है और पूछता है कि "तुम्हारे साथ क्या हुआ ?""मैं एक फ्रिज में बैठा हुआ था किसी ने उसे तीसरे मंजिल से नीचे फ़ेंक दिया"

05 फ़रवरी, 2009

एक अँधेरा लाख सितारे

एक अँधेरा लाख सितारे ,
एक निराशा लाख सहारे
सबसे बड़ी सौगात है जीवन ,
नादान है जो जीवन से हारे

दुनिया की यह बगिया ऐसी ,
जितने कांटे फूल भी उतने
दामन मे ख़ुद आ जायेंगे ,
जिनकी तरफ़ तू हाथ पसारे

बीते हुए कल की खातिर तू
आने वाला कल मत खोना
जाने कौन कहाँ से आकर ,
राहें तेरी फ़िर से संवारे

दुःख से अगर पहचान न हो तो,
कैसा सुख और कैसी खुशियाँ
तूफानों से ही तो लड़कर ,
लगते हैं साहिल कितने प्यारे

एक अँधेरा लाख सितारे ,
एक निराशा लाख सहारे
सबसे बड़ी सौगात है जीवन ,
नादान है जो जीवन से हारे .

04 फ़रवरी, 2009

नजरिया जीवन जीने का

एक दम्पति के शादी के ११ वर्ष बाद लड़का पैदा हुआ था। वे पति-पत्नी एक दुसरे को बहुत प्यार करते थे और वो लड़का उनकी आँखों का नगीना था। जब बच्चा करीब दो साल का था, एक सुबह पति ने घर में एक दवा की शीशी का मुहं खुला हुआ देखा।

उसे ऑफिस जल्दी जाना था इसलिए उसने अपनी पत्नी से कहा की वह दवा की शीशी का मुहं बंद करके आलमारी में रख दे। पर उसकी पत्नी रसोई में व्यस्त थी और काम करने में ये बात भूल गई।

बच्चे ने शीशी को देखा और खेलते हुए उसके पास पहुँच गया, उसे दवा का रंग बहुत पसंद आया और वह उसे पुरा पी गया। दवा नशीली थी, जो डॉक्टर के निर्देश के अनुशार लेनी थी। बच्चे की माँ जल्दी से बच्चे को ले के अस्पताल जाती है लेकिन बच्चा मर जाता। माँ अचेत हो जाती है ...और सोचती है की वो अब अपने पति का सामना कैसे करेगी।

घबराया हुआ पिता जब अस्पताल पहुंचता है तो अपने बच्चे को मरा हुआ पाता है।वह अपनी पत्नी की ओर देखता है कुछ शब्द बोलता है।

प्रश्न :
वो शब्द क्या थे ?
इस कहानी का तात्पर्य का क्या है ?







उत्तर :
पति बोलता है "प्रिये, मैं तुम्हारे साथ हूँ"।

पति से ऐसा उत्तर बिल्कुल विपरीत था परन्तु दूरदर्शिता के कारण एक दम स्वभाविक था। बच्चा मर चुका था। वह कभी भी वापस नही आ सकता था। माँ को गलत ठहराना उचित नही था क्योंकि अगर उसने वह शीशी वहां से हटा दी होती तो ऐसा कुछ नही होता ।

किसी को भी दोष नही दे सकते। उसने भी अपना इकलोता बच्चा खोया है। उसे धैर्य और सहानुभूति की आवयश्कता थी। जो उसने दिया।

अगर हर कोई जीवन को इस नजरिये से देखे तो इस संसार में बहुत कम दिक्कते-परेशानिया रह जाएँगी। " लाखों मिलों की यात्रा एक कदम बठाने से शुरू होती है"। अपने दुःख, ईष्या, डर, लोभ, दुश्मन को भूल जाओ । तब आप को पता चलेगा की कोई काम इतना मुश्किल नही है जितना आप सोचते थे।

हम अपना बहुत सा समय इस बात में गुज़ार देते है कि इस काम के लिए कौन दोषी है या किस पर ये दोष मढ़ सकते हैं।

03 फ़रवरी, 2009

सुख-दुःख (एक सवाल )

मेरा गाँव प्रतापगढ़ जिले के पट्टी तहसील में पड़ता है मैं वही की एक घटना आप के सामने रखने जा रहा हूँ . मेरे गाँव में एक परिवार में दो पुत्र थे , बड़े का नाम दान बहादुर और छोटे का नाम समर बहादुर . माता-पिता की मृत्यु के बाद दोनों अलग हो गए .दान बहादुर खेती करते थे और समर बहादुर लेखपाल थे. दान बहादुर के तीन पुत्र है और समर बहादुर के दो पुत्र .

दान बहादुर ने खेती करके अपने बच्चो को पढाया और समर बहदुर के पास पैसे की कोई कमी नही थी पेशे से लेखपाल जो थे. दान बहादुर का बड़ा बेटा इंटर कालेज में अध्यापक हो गया, मझला होम्योपैथी की पढ़ाई करके एक नर्सिग होम का मालिक है, छोटा बेटा कोपरेटिव बैंक में कलर्क हो गया. इधर समर बहादुर के दोनों पुत्र इलाहबाद में आई. ऐ. एस.- पी.सी.एस. की तैयारी कर रहे थे लेकिन कई साल गुज़र जाने के बाद भी कुछ नही कर पाये .

जैसा की आप जानते है कि आदमी अपने दुःख से दुखी नही है दुसरे के सुख से दुखी होता है. वही हाल समर बहादुर का हुआ वो अपने बड़े भाई के पुत्रो को देख कर दुखी रहने लगे. दान बहादुर के पुत्रो ने गाँव में एक बड़ा पक्का मकान बनवा दिया एक बुलेरो गाड़ी खरीद ली. समर बहादुर भी कहाँ पीछे रहने वाले थे उन्होंने भी रिटायर्मेंट के मिले पैसे और बाज़ार की जमीन बेच कर एक पक्का मकान बनवाया और गाड़ी ले ली.

कुछ साल हुए दान बहदुर का बड़ा बेटा सुल्तानपुर जिले में अपना मकान बना कर अपने परिवार के साथ रहने लगा, मझला भी इलाहबाद में अपने परिवार के साथ रहने लगा. गाँव पर दान बहादुर का छोटा बेटा अपने परिवार के साथ रहता था पर उसकी पत्नी ने कहा जब उसकी जेठानी लोग गाँव में नही रहना चाहती हैं तो फिर वो क्यों रहे उसे भी शहर में रहना है बच्चो को कान्वेंट स्कुल में पढ़ना है. जब घर में कलेश ज्यादा हो गया तो दान बहादुर ने उसे भी शहर जा के रहने को कह दिया. छोटा बेटा अपना परिवार ले के लखनऊ में जा के बस गया.

उधर समर बहादुर के दोनों पुत्र इलाहबाद से वापस गाँव आ गए. बड़ा बेटा गाँव में ही एक स्कुल चलाने लगा और छोटा खेती का काम देखने लगा. दोनों बेटे की पत्निया गाँव में रहती है और सास-ससुर की सेवा कर रही है .

अब दान बहादुर के घर में दोनों पति-पत्नी के अलावा कोई नही है दोनों लोग ७०-७५ की उमर में ख़ुद बनाते-खाते है, बेटे आते है गर्मियों की छुट्टी में अपने बच्चो के साथ कुछ दिन रहते है और जाते समय गेहूं , चावल, चना जो भी कुछ होता है ले जाते है।

अब बेचारे दान बहादुर दुखी है अपने छोटे भाई का सुख देख के, कि उसके बेटे-बहुएं घर पर रह के उनकी सेवा कर रहें है और यहाँ तीन होने पर भी ख़ुद बनाना-खाना पड़ रहा है।

मेरे मस्तिष्क में एक बात ये घुमती है आखिर ऐसा क्यों हो रहा हैं हमारे आस पास जिनके बच्चे पढ़ लिख के अपने पैरो पर खड़े हो जाते है अपने माँ - बाप को छोड़ कर चले जाते है.

02 फ़रवरी, 2009

प्रेम (जीवन सार )

एक सेठ के पास चार पत्निया थी . उसे अपनी चौथी पत्नी से बहुत ज्यादा प्रेम था वह उसे महंगे आभूषण देता था .वह उसे वो सारी सुख सुविधा देता था जो वह चाहती थी .

वह अपनी तीसरी पत्नी से भी बहुत प्रेम करता था. अपने दोस्तों के बीच उसे दिखा कर वह गर्व का अनुभव करता था लेकिन उसे डर था कि वो कही किसी और के पास न चली जाए .

वह आपनी दूसरी पत्नी से भी प्रेम करता था .वह बहुत ही विचारवान और सयमी महिला थी जो सेठ के लिए बहुत विश्वास पात्र थी .जब भी सेठ को कोई परेशानी आती थी तो वो अपनी दूसरी पत्नी से सलाह लेता था और वो उसकी मदद करती थी .
सेठ की पहली पत्नी बहुत समर्पित सगनी थी वो उसके व्यवसाय , धन और घर की देखभाल करती थी .सेठ उससे प्रेम नही करता था और उस पर धयान भी नही देता था पर वो सेठ से बहुत ज्यादा प्रेम करती थी.

एक दिन सेठ बीमार पड़ गया और उसे पता चल गया कि वह अब ज्यादा दिन जीवित नही रहेगा । उसने अपने विलासिता भरे जीवन के बारे में सोचा और ख़ुद से कहा "मेरे पास चार पत्निया है पर मरने के बाद मैं अकेला हो जाऊंगा. कितना अकेला हूँ मैं ! " .

तब, उसने अपनी चौथी पत्नी से पूछा "मैंने तुम्हे सबसे ज्यादा प्यार किया है , तुम्हारा हर ख्याल रक्खा है . अब मैं मर रहा हूँ ,क्या तुम मेरा साथ दोगी, मेरे साथ तुम भी ये संसार छोड़ दोगी ?" "कभी नही " ऐसा जवाब देते हुए बिना कुछ और कहे वो वहां से चली गई .

ऐसा जवाब सुन कर सेठ के ह्रदय में धक्का लगा .तब दुखी सेठ ने अपनी तीसरी पत्नी से पूछा "मैं आपने जीवन में तुमसे बहुत प्रेम किया है .अब मैं मर रहा हूँ ,क्या तुम मेरा साथ दोगी, मेरे साथ तुम भी ये संसार छोड़ दोगी ?" "नही!" चौथी पत्नी बोली "यहाँ जिन्दगी बहुत अच्छी है ! तुम्हारे मरने के बाद मैं दूसरा विवाह कर लुंगी!" सेठ का ह्रदय ठंडा पड़ने लगा .

तब उसने अपनी दूसरी पत्नी से पूछा "मैं हमेशा तुम्हारे पास मदद के लिए आया और तुमने हमेशा मेरी मदद की है। अब मुझे तुम्हारी फिर मदद चाहिए .अब मैं मर रहा हूँ ,क्या तुम मेरा साथ दोगी, मेरे साथ तुम भी ये संसार छोड़ दोगी ?" "मैं क्षमा चाहती हूँ , मैं तुम्हारी कोई मदद नही कर सकती हूँ" दूसरी पत्नी बोली "हाँ मैं तुम्हे कब्र तक छोड़ सकती हूँ " ये जवाब सुन कर सेठ को लगा कि एक तूफान आया जिसने उसे तोड़ दिया है .

तभी एक आवाज आती है "मैं तुम्हारे साथ चलूंगी . इससे कोई फर्क नही पड़ता कि तुम कहाँ जा रहे हो" सेठ ने देखा उसकी पहली पत्नी ये कह रही थी . वह बहुत दुखी और कमज़ोर दिखाई दे रही थी . सेठ ने क्षमा मांगते हुए कहा "मैं तुम्हारा अच्छा ख्याल रख सकता था, जो मेरे पास था!".

हम सब के पास जीवन में चार पत्निया होती है .
  1. चौथी पत्नी हमारा शरीर है . हम अच्छा दिखने के लिए कितना समय और ध्यान खर्च करते है पर मरने पर ये शरीर यही रह जाता है .
  2. तीसरी पत्नी ? हमारा अधिकार , पैसा और सम्पत्ति है जो हमारे मरने के बाद किसी और के पास चला जाता है .
  3. दूसरी पत्नी हमारा परिवार और मित्र है. इससे फर्क नही पड़ता कि वो हमारे कितने घनिष्ठ है जब तक हम जीवित है , वे हमारा केवल कब्र तक ही साथ देगे .
  4. पहली पत्नी हमारी आत्मा है जिसकी हम अक्सर आनन्द , उन्माद में उपेक्षा करते है .

एक छोटी सी कहानी

एक चील पेड़ पर बैठा आराम कर रहा था .
एक खरगोश ने उसे देखा और पूछा कि "क्या मैं भी तुम्हारी तरह बिना कुछ किए आराम से बैठ सकता हूँ ".
चील बोला "हाँ , क्यों नही ".
तो खरगोश जहाँ चील बैठा था उसी जगह नीचे जमीन पर बैठ गया और आराम करने लगा । तभी उधर से एक लोमडी गुजरी और उसने खरगोश को आराम करते देखा तो उसके ऊपर कूदी और खा गई .
  • आप अगर बैठे हुए हैं और कुछ नही कर रहे हैं , तो आप को बहुत ज्यादा ऊचाई पर होना चाहिए ।(हम जमीन पर रह कर अगर आसमान के सपने देखते है तो हमें वहां पहुचने के लिए कर्म करना पड़ेगा , बिना कर्म किये हम जमीन पर भी बहुत समय तक नही रह सकते हैं )