04 फ़रवरी, 2009

नजरिया जीवन जीने का

एक दम्पति के शादी के ११ वर्ष बाद लड़का पैदा हुआ था। वे पति-पत्नी एक दुसरे को बहुत प्यार करते थे और वो लड़का उनकी आँखों का नगीना था। जब बच्चा करीब दो साल का था, एक सुबह पति ने घर में एक दवा की शीशी का मुहं खुला हुआ देखा।

उसे ऑफिस जल्दी जाना था इसलिए उसने अपनी पत्नी से कहा की वह दवा की शीशी का मुहं बंद करके आलमारी में रख दे। पर उसकी पत्नी रसोई में व्यस्त थी और काम करने में ये बात भूल गई।

बच्चे ने शीशी को देखा और खेलते हुए उसके पास पहुँच गया, उसे दवा का रंग बहुत पसंद आया और वह उसे पुरा पी गया। दवा नशीली थी, जो डॉक्टर के निर्देश के अनुशार लेनी थी। बच्चे की माँ जल्दी से बच्चे को ले के अस्पताल जाती है लेकिन बच्चा मर जाता। माँ अचेत हो जाती है ...और सोचती है की वो अब अपने पति का सामना कैसे करेगी।

घबराया हुआ पिता जब अस्पताल पहुंचता है तो अपने बच्चे को मरा हुआ पाता है।वह अपनी पत्नी की ओर देखता है कुछ शब्द बोलता है।

प्रश्न :
वो शब्द क्या थे ?
इस कहानी का तात्पर्य का क्या है ?







उत्तर :
पति बोलता है "प्रिये, मैं तुम्हारे साथ हूँ"।

पति से ऐसा उत्तर बिल्कुल विपरीत था परन्तु दूरदर्शिता के कारण एक दम स्वभाविक था। बच्चा मर चुका था। वह कभी भी वापस नही आ सकता था। माँ को गलत ठहराना उचित नही था क्योंकि अगर उसने वह शीशी वहां से हटा दी होती तो ऐसा कुछ नही होता ।

किसी को भी दोष नही दे सकते। उसने भी अपना इकलोता बच्चा खोया है। उसे धैर्य और सहानुभूति की आवयश्कता थी। जो उसने दिया।

अगर हर कोई जीवन को इस नजरिये से देखे तो इस संसार में बहुत कम दिक्कते-परेशानिया रह जाएँगी। " लाखों मिलों की यात्रा एक कदम बठाने से शुरू होती है"। अपने दुःख, ईष्या, डर, लोभ, दुश्मन को भूल जाओ । तब आप को पता चलेगा की कोई काम इतना मुश्किल नही है जितना आप सोचते थे।

हम अपना बहुत सा समय इस बात में गुज़ार देते है कि इस काम के लिए कौन दोषी है या किस पर ये दोष मढ़ सकते हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. इतना विवेक कहा होता है की हम आगे की सोच कर निर्णय ले सके . हाँ ये बात सही है की हम अपना दोष जल्दी नही मानते है , क्या करे मानव स्वभाव है .

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