देश में बच्चे कम और बाबा ज्यादा पैदा हो रहे है, आश्चर्य की बात जितने बाबा उससे ज्यादा भक्त है । भक्त तो ऐसे पागल है की पूछिये मत, बाबा नहीं भगवान है बाबा । बाबा अनंत , बाबा की लीला अनंता ।
एक बार एक बाबा जी का ३ दिवसीय प्रवचन एक बड़े शहर के छोटे कस्बे में था । क़स्बा शहर से ४०-५० किलोमीटर दूर था । प्रवचन के पहले दिन बाबा का एक भक्त प्रवचन शुरू होने से पहले आया और बाबा जी के चरणों में १००००१ रूपये की भेंट चढाई और बाबा जी से आशीर्वाद ग्रहण किया । बाबा जी ने भक्त से पूछा की वो कहाँ से आया है तो भक्त ने बताया की वो दिल्ली में व्यवसाई है और इस शहर में उसका पैतृक निवास है । उसने बाबा जी को अपने निवास पर भी आमंत्रित किया पर बाबा जी ने मना कर दिया, बोले इस बार संभव नहीं है, वो अगली बार जब आयेगे तो जरुर जायेंगे ।
भक्त ने बाबा जी का प्रवचन प्रथम पंक्ति में बैठ कर सुनने के लिए , आयोजक से २५००० प्रतिदिन के हिसाब से 75000 रुपये देकर , बाबा जी के कागजी ट्रस्ट के नाम रसीद कटवा ली । प्रथम दिन भक्त ने बड़े श्रद्धा -भाव के साथ बाबा जी का प्रवचन सुना, जाते समय भी बाबा जी के चरण छूकर गया और आयोजक से बोला की अगली बार बाबा जी के आने , रहने और पंडाल की वयवस्था उसके तरफ से होगी ।
भक्त एक महंगी गाड़ी से आया हुआ था, साथ में एक अंगरक्षक भी था , अच्छा चढावा भी चढाया था , इन बातों से बाबा जी को लग गया की भक्त एक मोटा असामी है । अगले दिन प्रवचन में भक्त प्रवचन शुरू होने के बाद आया । प्रवचन खत्म होने पर भक्त, बाबा जी से मिला और बताया की महाराज बिजनेस की वजह से दिल्ली जाना पड़ा था लेकिन वहां से काम खत्म कर के वापस आ गया हूँ , अब कल शाम को आपका प्रवचन सुन कर ही वापस जाऊंगा , आपको गुरु बनाते ही मेरे कष्ट दूर होने लगे है , एक डूबा हुआ धन वापस आ गया है , आयोजक लोगों से कह दीजिये की जितना खर्च हो रहा है , उसका आधा पैसा मैं दूंगा । बाबा खुश थे ऐसा भक्त पाकर .
अंतिम दिन प्रवचन में बहुत भीड़ हुई , लोगो ने बहुत नकद चढावा चढाया । लाखों रुपये तीन दिन के भीतर बाबा जी के पास नकद आ गए थे । बाबा जी को रात को शहर से राजधानी पकड़ कर अपने आश्रम वापस जाना था । बाबा जी ने अपने भक्त को बुलया और कहा की यदि उन्हें दिक्कत न हो तो वे उनके साथ स्टेशन चले , नकद ज्यादा है शहर ५० किलोमीटर दूर है और रास्ता भी ठीक नहीं है , अगर २ -३ गाड़ी एक साथ चलेगी तो कोई दिक्कत नहीं होगी ।
भक्त ने आग्रह किया की बाबा जी आप मेरे साथ मेरी गाड़ी में बैठ कर चलिए, रास्ते में मैं आप से बोध -ज्ञान लेता चलूँगा । बाबा मान गए । बाबा ,भक्त ,अंगरक्षक और ड्राइवर एक गाड़ी में और बाकि बाबा के चेले अन्य गाड़ियों में बैठ के रवाना हुए । भक्त का ड्राईवर बहुत तेज गाड़ी चला रहा था , जब पीछे लोग दिखाई देना बंद हो गए तो ड्राईवर ने गाड़ी सड़क से निचे उतार कर सुनसान जगह में लगा दी। बाबा को पता भी नहीं चला , वो तो भक्त को ज्ञान दे रहे थे, भक्त ने बाबा जी के रिवाल्वर लगा दी, बोला बाबा चुप -चाप उतरोगे या गोली चलानी पड़ेगी । बाबा अवाक् , सारा पैसा बाबा जी ने भक्त की गाड़ी में रखवाया था और भात उन्हें गाड़ी से उतार रहा है मतलब ये भक्त नहीं ये तो लुटेरा है । बाबा जी चुप -चाप गाड़ी से उतर गए और उनका भक्त पैसे लेकर गायब हो गया । थोडी देर में जब बाबा जी के चेले अपनी गाड़ी से रास्ते से गुजरे तो देखा बाबा जी पागलो की तरह सड़क पर टहल रहे है, उन्होंने गाड़ी रोकी और जब बाबा जी से पता चला की वो भक्त नहीं एक ठग था , तो सबके होश उड़ गए । बहुत खोजने पर भी वो भक्त (ठग), बाबा जी को नहीं मिला। पुलिस के पास जा नहीं सकते थे , किसी से बता नहीं सकते थे , क्योकि जो धन मिला था उसका हिसाब सरकार को नहीं पता चलना चाहिए था (टैक्स जो नहीं देते )।
भक्त उर्फ़ नटवरलाल बाबा को कई लाख का चूना लगा गया था । न माया मिली न राम , बाबा गए खाली हाथ।