18 मार्च, 2009

इलाहाबाद से रायबरेली

मेरे गाँव में एक सुरेन्द्र जी है. वो अपने साथ घटी एक घटना अक्सर सुनाते हैं , वो मैं आज आप को सुनाने जा रहा हूँ .

करीब १५-२० साल पहले की बात है , सुरेन्द्र जी इलाहाबाद में रह कर सरकारी नौकरी की तैयारी करते थे . घर से ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे तो उन्होंने प्रयाग स्टेशन के पास एक कमरा किराये पर लिया हुआ था . कमरे के अलवा और कुछ नहीं था , ना रसोई और ना ही शौचालय.

दैनिक क्रिया-कर्म के लिए उन्हें बाहर जाना पड़ता था । घर के सामने से रेलवे लाइन जाती थी । जैसा की हमें पता ही है की रेलवे पटरी के किनारे स्थाई शौचालय के तौर पर प्रयोग किये जाते हैं ।सुरेन्द्र जी भी पटरी पार करके निपट आते थे

एक दिन सुबह उठे तो देखा पटरी पर एक गाड़ी खड़ी है , बहुत देर इंतजार करने पर जब वो गाड़ी नहीं गयी तो उन्होंने सोचा क्योंना डिब्बे के अन्दर से होते हुए उस पार चले जाये । लोटा ले के ये गाड़ी के अन्दर चढ़ गए तो उन्हें सामने डिब्बे में बना शौचालय दिख गया , मन में विचार किया की कहा बाहर जाये गाड़ी बहुत देर से खड़ी है इसी में निपट लेते हैं .

अभी वे शौचालय का प्रयोग कर ही रहे थे की गाड़ी चल दी . जब तक वो बाहर आकर उतरते तब तक गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली , गाड़ी कोई सुपर फास्ट थी जो इलाहाबाद से चलकर सीधे रायबरेली में रुकती थी (इलाहाबाद से रायबरेली १२० किमी दूर है ).

अब सुरेन्द्र जी परेशान लुंगी और बनियान पहने हाथ में लोटा लिए , डर रहे की कहीं टी टी आ गया तो क्या करेगे । करीब डेढ़-दो घंटे बाद वो रायबरेली पहुँच गए , अब कहाँ जाये इस हालत में .

उनके एक चचेरे भाई रायबरेली में रहते थे, उनका पता उन्हें याद था . पहुँच गए उनके घर, उनकी भाभी जी ने दरवाजा खोला और उन्हें इस हालत में देख कर उन्हें लगा की कुछ अनिष्ट हुआ है जिसकी सुचना देने ये हड़बडी में ऐसा लुंगी-बनियान में आ गए हैं और उन्होंने रोना शुरू कर दिया . रोने की आवाज सुन उनके भाई बाहर आये तो सुरेन्द्र जी ने पूरा हाल उन्हें सुनाया की किस तरह से वो इलाहाबाद से रायबरेली पहुँच गए .

उनके भाई ने उन्हें रोक लिया बोला "कल सुबह ट्रेन पकड़ के चले जाना आज यहीं रुक जाओ" .उधर शाम हो गई और सुरेन्द्र का कोई पता नहीं , घर का दरवाजा खुला हुआ (सुरेन्द्र जी ने सोचा था की अभी १० मिनट में आ जाऊंगा तो क्या ताला बंद करू )अगल-बगल वाले खोज करने लग गए जब वो कहीं नहीं मिले तो हुआ की कल सुबह चल के थाने में गुमशुदा की रिपोर्ट दर्ज़ करा देंगे .

अगले दिन सुबह जब सुरेन्द्र जी अपने कमरे पर पहुंचे तो उन्हें पता चला की अगर वो कुछ समय और देर से आते तो उनके गुम होने की रिपोर्ट थाने में लिखवा के उनके घर पर खबर कर दी जाती . जब उन्होंने अपने साथ हुई घटना सबको सुनाई तो सबका हँसते - हंसते बुरा हाल था , एक बोले अच्छा हुआ ट्रेन रायबरेली रुकती थी कही दिल्ली जा के रुकती तो वापस भी नहीं आ पाते.

16 टिप्‍पणियां:

  1. :-)
    जरा ट्रेन, कोच नम्बर और डेट बतायें। टीटीई को काम में कोताही पर थामा जाये (अगर वह नौकरी में अब भी हो)! :-)

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  2. आलोक भाई ये हास्यापद घटना । मजेदार

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  3. गजबै है। सुरेंद्रजी अब तो लाइन किनारे नहीं रहते

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  4. एक सत्य घटना जो लतीफा सा लगता है.

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  5. बेचारे सुरेन्द्र जी !! शुकर करे वो गाडी के नीचे से नही निकले.... वरना... लेकिन पढते पढते हमे बहुत हंसी आई... किस हाल मे.. कहा पहुचे.... राम राम

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  6. सुरेन्द्र जी को भी क्या सूझी की बाहर की ताज़ी हवा में निपटने के आनंद को छोड़कर रेलवे के बदबूदार शौचालय में गए थे. ज्यादा शौक है तो ज्ञानदत चचा से कहकर एक बोगी घर पर ही भिजवा दीजिये.

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  7. एक छोटी से घटना को आपने जिस रोचक शेली में लिखा है वो कबीले तारीफ है.

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  8. बहुत जबर्दस्त किस्सा है...असली हिन्दुस्तानी कहानी...

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  9. रोचक शेली में मजेदार किस्सा ....!!

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  10. ज्ञान बाबा को पता चल गया होता तो सुरेन्द्र जी वही रायबरेली मे ही भीतर कर दिये गये होते

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