पडोसी की जागरूकता और हितेषीपन कैसा होता है ये तो सब जानते है । एक कंपनी वाले तो ये कहते है की "आप किसी भी बात को अपने पडोसी से मत बताओ क्योंकि पडोसी, कभी भी आप का भला नही चाहेगा ।" अब वे ऐसा क्यों कहते है पता नहीं पर कुछ ऐसा हादसा हुआ की हमने भी जान लिया की दूर गाँव का आदमीं अच्छा है पर पडोसी नहीं ।
वाक्या ऐसा है की हम चार दोस्त(मैं , राहुल , नविन और सतेन्द्र ) सेक्टर १७ वसुंधरा गाजियाबाद में एक तीन कमरे का फ्लैट किराये पर लेके रहते थे। उस समय जयपुरिया इंस्टिट्यूट से ऍम सी ए कर रहे थे। बाहर के खाने से तंग आकर हमने घर में ही खाना बनाना शुरू कर दिया था। सतेन्द्र का घर सबसे पास में था वो रुड़की का रहने वाला था। उसके मम्मी-पापा एक दिन आके हमें सारा रसोई का सामान दिलवा गए थे। हम भी छुट्टियों में सतेन्द्र के घर चले जाते थे ।
खाना बनाने में सबसे मुश्किल काम होता था रोटी बनाना जिसे कोई नहीं चाहता था इसलिए हमने आपस में पारी बांध दी थी एक सप्ताह की। एक दिन दोपहर में सतेन्द्र की दीदी का फ़ोन आया की वो शाम को आ रही है कल उन्हें दिल्ली में कुछ काम है। दीदी के आने पर हम बड़े खुश थे की चलो आज अच्छा खाने को मिलेगा और कुछ करना भी नहीं पड़ेगा। दीदी ने पनीर की सब्जी और रोटी और चावल बनाये, रात के १० बज चुके थे और हम खाने जा ही रहे थे की दरवाजे की घंटी बजी।
नविन ने दरवाजा खोला तो देखा एक दरोगा, दो सिपाही के साथ दरवाजे पर खडा है। दरोगा ने अन्दर घुसते ही पूछा "यहाँ कौन-कौन रहता है?" नविन बोला "जी हम चार लोग रहते है"। दरोगा ने फिर पूछा "क्या काम करते हो "। नविन बोला" जी, जयपुरिया में पढ़ते है "। दरोगा बोले "आइकार्ड दिखाओ"। हमने अपने आइकार्ड दिखाए । फिर उसने पूछा "ये लड़की कौन है" । सतेन्द्र बोला "सर , मेरी दीदी है "। दरोगा बोले "तेरी सगी बहन है "। सतेन्द्र बोला "हाँ, जी "। तब एक सिपाही सतेन्द्र को लेके बाहर चला गया। दरोगा ने दीदी से पूछा "तुम्हारे मामा हैं ?" दीदी बोली "हाँ हैं "। दरोगा ने फिर पूछा "नाम क्या है उनका ?" दीदी ने मामा जी का नाम बताया । तब तक वो सिपाही जो सतेन्द्र को लेके बहार गया था अन्दर आ गया, सतेन्द्र अभी बाहर ही था । सिपाही ने दरोगा के कान में कुछ बोला उसके बाद , दरोगा साहब ने सतेन्द्र को अन्दर बुला लिया और बोले "ज्यादा घुमा-फिरा मत किया करो आराम से पढो-लिखो" इतना कह के वो चले गए ।
अब सतेन्द्र गुस्से में था की ये पुलिस वाले क्यूँ आये थे , किसने फ़ोन करके इन्हें बुलया था । राहुल बोला शांत हो जाओ जिसने भी बुलाया होगा, देख अभी थोडी देर में आ रहा होगा।
५ मिनट बीते होगे की लगभग एक ३५ वर्षीय आदमी दरवाजे पर आ गया। बोला "जी मैं आपके निचे वाले फलैट में रहता हूँ , ये पुलिस वाले क्यों आये थे ?"। सतेन्द्र बोला "जी, वो तो भैया है हमारे यही इन्द्रपुरम थाने में हैं तो मिलने आये थे ". उस आदमी का चेहरा अजीब सा हो गया । फिर बोला "आप कितने लोग रहते है ?" सतेन्द्र बोला "१० लोग रहते है , अभी ६ घर गए हैं बाकी ४ हैं "। वो आदमी फिर बोला "क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ "। सतेन्द्र बोला "नहीं , आप अन्दर नहीं आ सकते है "। वो बोला "क्यों "। सतेन्द्र बोला "आप हैं कौन , न तो आप मेरे मकान मालिक है और नहीं आप सोसायटी इन्चार्ग"। वो बोला "मैं आप का पडोसी हूँ "। सतेन्द्र बोला "हमने तो आप को कभी नहीं देखा , क्या पता आप चोर हो "। अब वह आदमी गुस्से में आ गया था , बोला "आप लोग लड़की ले के आये है "। सतेन्द्र बोला" हाँ ,लेके आये हैं तो क्या कर लोगे", आदमी बोला "वो पुलिस वाले तो आपके भैया नहीं थे, मैंने चौकी में फ़ोन करके उन्हें बुलया था पर आप लोगो ने शायद लड़की को कही छुपा दिया होगा" तब तक राहुल बोल पड़ा "देखिये आप तमीज इस बात कीजिये हमारी दीदी आई हुई हैं "। वो आदमी बोला "अच्छा आप की बड़ी बहन है, मुझे लगा की आप लोग लड़की लेके आये हैं, इसलिए मैंने चौकी फ़ोन करके पुलिस वालो को बुलाया था" अब सतेन्द्र का गुस्सा भड़क उठा था बोला "क्या लड़को के घर में माँ -बहन , मौसी, बुआ, चाची नहीं आ सकती। आपने फ़ोन करने से पहले एक बार पता तो कर लिया होता। चले जाओ यहाँ से वरना एक लात मरूँगा सीढ़ी से निचे गिर जावोगे" वो आदमी चुप-चाप निचे चला गया।
वाक्या ऐसा है की हम चार दोस्त(मैं , राहुल , नविन और सतेन्द्र ) सेक्टर १७ वसुंधरा गाजियाबाद में एक तीन कमरे का फ्लैट किराये पर लेके रहते थे। उस समय जयपुरिया इंस्टिट्यूट से ऍम सी ए कर रहे थे। बाहर के खाने से तंग आकर हमने घर में ही खाना बनाना शुरू कर दिया था। सतेन्द्र का घर सबसे पास में था वो रुड़की का रहने वाला था। उसके मम्मी-पापा एक दिन आके हमें सारा रसोई का सामान दिलवा गए थे। हम भी छुट्टियों में सतेन्द्र के घर चले जाते थे ।
खाना बनाने में सबसे मुश्किल काम होता था रोटी बनाना जिसे कोई नहीं चाहता था इसलिए हमने आपस में पारी बांध दी थी एक सप्ताह की। एक दिन दोपहर में सतेन्द्र की दीदी का फ़ोन आया की वो शाम को आ रही है कल उन्हें दिल्ली में कुछ काम है। दीदी के आने पर हम बड़े खुश थे की चलो आज अच्छा खाने को मिलेगा और कुछ करना भी नहीं पड़ेगा। दीदी ने पनीर की सब्जी और रोटी और चावल बनाये, रात के १० बज चुके थे और हम खाने जा ही रहे थे की दरवाजे की घंटी बजी।
नविन ने दरवाजा खोला तो देखा एक दरोगा, दो सिपाही के साथ दरवाजे पर खडा है। दरोगा ने अन्दर घुसते ही पूछा "यहाँ कौन-कौन रहता है?" नविन बोला "जी हम चार लोग रहते है"। दरोगा ने फिर पूछा "क्या काम करते हो "। नविन बोला" जी, जयपुरिया में पढ़ते है "। दरोगा बोले "आइकार्ड दिखाओ"। हमने अपने आइकार्ड दिखाए । फिर उसने पूछा "ये लड़की कौन है" । सतेन्द्र बोला "सर , मेरी दीदी है "। दरोगा बोले "तेरी सगी बहन है "। सतेन्द्र बोला "हाँ, जी "। तब एक सिपाही सतेन्द्र को लेके बाहर चला गया। दरोगा ने दीदी से पूछा "तुम्हारे मामा हैं ?" दीदी बोली "हाँ हैं "। दरोगा ने फिर पूछा "नाम क्या है उनका ?" दीदी ने मामा जी का नाम बताया । तब तक वो सिपाही जो सतेन्द्र को लेके बहार गया था अन्दर आ गया, सतेन्द्र अभी बाहर ही था । सिपाही ने दरोगा के कान में कुछ बोला उसके बाद , दरोगा साहब ने सतेन्द्र को अन्दर बुला लिया और बोले "ज्यादा घुमा-फिरा मत किया करो आराम से पढो-लिखो" इतना कह के वो चले गए ।
अब सतेन्द्र गुस्से में था की ये पुलिस वाले क्यूँ आये थे , किसने फ़ोन करके इन्हें बुलया था । राहुल बोला शांत हो जाओ जिसने भी बुलाया होगा, देख अभी थोडी देर में आ रहा होगा।
५ मिनट बीते होगे की लगभग एक ३५ वर्षीय आदमी दरवाजे पर आ गया। बोला "जी मैं आपके निचे वाले फलैट में रहता हूँ , ये पुलिस वाले क्यों आये थे ?"। सतेन्द्र बोला "जी, वो तो भैया है हमारे यही इन्द्रपुरम थाने में हैं तो मिलने आये थे ". उस आदमी का चेहरा अजीब सा हो गया । फिर बोला "आप कितने लोग रहते है ?" सतेन्द्र बोला "१० लोग रहते है , अभी ६ घर गए हैं बाकी ४ हैं "। वो आदमी फिर बोला "क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ "। सतेन्द्र बोला "नहीं , आप अन्दर नहीं आ सकते है "। वो बोला "क्यों "। सतेन्द्र बोला "आप हैं कौन , न तो आप मेरे मकान मालिक है और नहीं आप सोसायटी इन्चार्ग"। वो बोला "मैं आप का पडोसी हूँ "। सतेन्द्र बोला "हमने तो आप को कभी नहीं देखा , क्या पता आप चोर हो "। अब वह आदमी गुस्से में आ गया था , बोला "आप लोग लड़की ले के आये है "। सतेन्द्र बोला" हाँ ,लेके आये हैं तो क्या कर लोगे", आदमी बोला "वो पुलिस वाले तो आपके भैया नहीं थे, मैंने चौकी में फ़ोन करके उन्हें बुलया था पर आप लोगो ने शायद लड़की को कही छुपा दिया होगा" तब तक राहुल बोल पड़ा "देखिये आप तमीज इस बात कीजिये हमारी दीदी आई हुई हैं "। वो आदमी बोला "अच्छा आप की बड़ी बहन है, मुझे लगा की आप लोग लड़की लेके आये हैं, इसलिए मैंने चौकी फ़ोन करके पुलिस वालो को बुलाया था" अब सतेन्द्र का गुस्सा भड़क उठा था बोला "क्या लड़को के घर में माँ -बहन , मौसी, बुआ, चाची नहीं आ सकती। आपने फ़ोन करने से पहले एक बार पता तो कर लिया होता। चले जाओ यहाँ से वरना एक लात मरूँगा सीढ़ी से निचे गिर जावोगे" वो आदमी चुप-चाप निचे चला गया।
you are a good story maker
जवाब देंहटाएंgargi
बहुत अच्छे अंकल थे. .....कितना ध्यान रखते थे आपका.
जवाब देंहटाएंBahut badhiyaa....
जवाब देंहटाएंaap proffessional writing ke liye try kijiye.
Apka abhivyakti ka lehja accha laga. Balki bahut accha.
ye to apne mere muh ki baat cheen li:
खाना बनाने में सबसे मुश्किल काम होता था रोटी बनाना जिसे कोई नहीं चाहता.
hahahaha
आलोक भाई ये वर्तमान प्रगितशील सोच । अब क्या कहा जाय ऐसे पड़ोसी को ?
जवाब देंहटाएंजो पडोसी अपने टाइम में ऐसे गलत काम किया करते रहे होगे इसलिए उन्हें शक हुआ की आप लोग भी वही कर रहे हो .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे पडोसी थे आपके , आपकी हर हरकत पर नजर रखते थे .
जवाब देंहटाएंकभी कभी ऐसा होता है.
जवाब देंहटाएंऐसे padosi hon तो भी museebat...........
जवाब देंहटाएंपर न hon तो भी तो musibat हो सकती है
वे पडोसी खुद जो करते होंगे ... वही न समझेंगे ... अपने दिल से जानिए पराए दिल का हाल ।
जवाब देंहटाएंऐसा भी होता है.चलिये आखिर उनको अक्ल आ ही गई. अच्छा लिखा आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
chalo akl aa jayegi aage se unhe
जवाब देंहटाएंऐसा भी होता है जिन्दगी में.
जवाब देंहटाएंबडे अजीब पडोसी निकले, मै होता तो पकड ही लेता...
जवाब देंहटाएंअरे खाना बनाना ओर बरतन साफ़ करना बहुत कठीन होता है...