19 जुलाई, 2010

हम सन्तन से का मतलब

दो चोर थे , चोरी-चकारी करते करते उब गए तो सोचा की कोई और काम करते है. बहुत सोचने के बाद उन्होंने बाबा (संत) बनने का निश्चय किया. अब वो लोग गाँव गाँव जा कर भगवान का गुण गान करने लगे. एक बार वो लोग एक गाँव से गुज़र रहे थे तो देखा की कुछ लोग डंडे और लाठी लेकर साही को मार रहे है पर साही ने अपने कांटे खोल दिए थे इसलिए उसे मार का असर नहीं हो रहा था और वह भाग रहा था.

एक बाबा ने दुसरे की तरफ देखा और बोला "बाबा, बोले तो उन्हें बता दे की साही ऐसे नहीं मरेगा ". दुसरे बाबा बोले " अब हम लोग संत हो गए हैं , जीव हत्या पाप है ". पहले वाले बाबा बोले "महाराज, मन नहीं मान रहा, एक बार बता देता हूँ ". दुसरे वाले बाबा बोले "नहीं, ऐसा मत करो ". लेकिन बाबा नहीं माने और जैसे ही बाबा गाँव वाले के समीप पहुचे तो बोले उठे "मुड़े मारे साही मरे , हम सन्तन से का मतलब " (सर पर मारने से साही मरता है , हम संत लोगों से क्या मतलब).

09 सितंबर, 2009

छुटपुट चुटकुले

राज जी (ताऊ से)- शादी में दूल्हे के साथ बाराती क्यों जाते हैं?
ताऊ - क्योंकि बड़े कहते हैं कि किसी की खुशी में जाओ या न जाओ पर मुसीबत में जरूर जाना चाहिए।


ताऊ (डॉक्टर से)- मुझे अजीब सी बीमारी हो गयी है.. जब मेरी बीवी (ताई ) बोलती है तो मुझे कुछ सुनाई नही देता..
डॉक्टर- ये बीमारी नही खुदा की नियामत है


ज्ञान जी ने आने वाले से पूछा, " क्या तुम्हें पता नही कि आज्ञा के बिना अन्दर आना मना है।"
आने वाला, "जनाब मैं आज्ञा लेने के लिए ही अन्दर आया हूं।"


यात्री (मुझसे )- तुमने मेरी जेब में हाथ क्यों डाला?
मैं - मुझे माचिस चाहिए थी। यात्री- तुम मुझसे मांग सकते थे।
मैं - मैं अजनबियों से बात नही करता


सुरेन्द्र जी को उनके दोस्त ने खाने पर बुलाया।
सुरेन्द्र जी जब दोस्त के घर गए तो घर पर ताला लगा था, और लिखा था मैंने तुमको बेवकूफ बनाया।
सुरेन्द्र जी ने होशियारी दिखायी और नीचे लिख दिया, मैं तो आया ही नही था।


सुरेन्द्र जी की पत्नी (सुरेन्द्र जी से)- तुम्हें मेरी कौन सी बात सबसे अच्छी लगती है, मेरी खूबसूरती या मेरी समझदारी।
सुरेन्द्र जी - मुझे तुम्हारी ये मजाक करने की आदत बहुत अच्छी लगती है


अध्यापिका - रामप्यारी ! तुम्हारा सारा होमवर्क गलत है।
आखिर इसका क्या कारण है??
रामप्यारी - जी, कारण तो ताऊ ही बता सकते है


अध्यापक ने रामप्यारी से कहा, मैने कल तुम्हें जो हिंन्दी मे पाठ पढाया था, उसे सुनाओ ।
रामप्यारी - टीचर जी , आता नही है। इस पर अध्यापक ने कहा, नही आता तो ऐसा करो जो आता है वही सुनाओ।
रामप्यारी बोली - मुझे तो गाना आता है वही सुना दूँ ?

(साभार जागरण)

02 सितंबर, 2009

जिंदगी एक उड़ान है


जिंदगी एक उड़ान है
सुख और दुःख इसमे एक समान है
लगता है देखकर दूसरों को उड़ना आसान है
पर आती है कितनी मुश्किलें हम तो अन्जान है
जिंदगी की इस दौड़ में हर कोई मेहमान है
पुरे कर लिए अपने सपने जिसने , वो ही महान है
कुछ ऐसे लोग भी है जो जिन्दगी से परेशान है
हार कभी न मानना, ये तो जिन्दगी का इम्तहान है
जिन्दगी दिखा रही है हर रोज खेल नए , हमें इसका गुमान है
कभी कुछ खो के , कभी कुछ पा के हम हैरान है
जो हार गया समय से पहले , तो ये जिन्दगी का अपमान है
मिली है बड़ी मुश्किलों से ये जिन्दगी , ये ऊपर वाले का अहसान है
गिर कर फिर सभलना ही जिन्दगी की पहचान है
जो दुसरो के लिए कुछ कर जाए , तो ये जिन्दगी की शान है
जिंदगी एक लम्बी उड़ान है
सुख और दुःख इसमे एक समान है

03 अगस्त, 2009

हँसते-मुस्कुराते

डाकू (ताऊ से)- सुन या तो तू अपनी जान देगा, या फिर वह सारा रुपया जो पोटली में दबाकर ले जा रहा है।

ताऊ (डाकू से)- नहीं जी, तुम मेरी जान ही ले लो, रुपया तो मैंने बुढ़ापे के लिए रख छोड़ा है।


ताऊ (भाटिया जी से)- मैं बचपन में बहुत ताकतवर था..

भाटिया जी (ताऊ से)- वो कैसे?

ताऊ - मां कहती है मैं जब रोता था तो सारा घर सिर पर उठा लेता था।


गरीब मरीज- डॉक्टर साहब मेरे पास पैसे नही हैं आप मेरा इलाज कर दें तो कभी आपके काम आऊंगा।

डॉक्टर- तुम काम क्या करते हो?

मरीज- जी कब्र खोदता हूं।


मैं (रामप्यारी से)- तुम बल्ब पर ताऊ का नाम क्यों लिख रहे हो?

रामप्यारी (मुझसे से)- मैं ताऊ का नाम रोशन करना चाहती हूं।


रामप्यारी बहुत देर से घर के बाहर खड़ी दरवाजे की घंटी बजाने की कोशिश कर रही थी तभी ज्ञान जी आये और बोले - क्या कर रही हो रामप्यारी ?

रामप्यारी - अंकल, ये घंटी बजाना चाहती हूं।

ज्ञान जी (घंटी बजाकर)- ये तो बज गयी अब क्या है।

रामप्यारी - अब भागो!


मैं (बॉस से)- सर मेरा वेतन बढ़ा दीजिये, अब मेरी शादी होने वाली है।

बॉस- कार्यालय के बाहर होने वाली दुर्घटनाओं के लिए ऑफिस जिम्मेदार नही है।

लेडी डॉक्टर (गुस्से से)- तुम रोज सुबह अस्पताल के बाहर खड़े होकर औरतों को क्यों घूरते हो?

मैं (डॉक्टर से)- मैडम, अस्पताल के बाहर ही तो लिखा है- औरतों को देखने का समय सुबह 9 बजे से 11 बजे तक।



पत्नी (सुरेन्द्र जी से )- रात को आप शराब पीकर गटर में गिर गए थे।

सुरेन्द्र जी (पत्नी से)- क्या बताऊं, सब गलत संगत का असर है, हम 4 दोस्त....1 बोतल, और वो तीनों कम्बख्त पीते नही।


27 जुलाई, 2009

चुनाव परिणाम

ग्राम प्रधान चुनाव के नतीजे आ गए थे , सुरेन्द्र जी बड़े परेशान से घर के आगे चारपाई डाल कर बैठे हुए थे . तभी उनके खेतों में काम करने वाला छोटे लाल आ और बोला "का बात है साहब बड़ा परेशान लागत हो ? ".

सुरेन्द्र जी बोले "चुनाव का नतीजा आ गया है बस उसे जान कर बड़ा दुखी हूँ "

छोटे लाल बोला "का भवा साहब, हम और हमरे घरवाली तो आपके ही वोट दिए रहे , लेकिन सुने हैं की जगदीश जीत गए हैं "

इतना सुनते ही सुरेन्द्र जी के चहरे का रंग बदल गया और वो बोले "का छोटेलाल, तू सही कह रहे हो की तू हमको वोट दिए हो "

छोटेलाल बोला "हाँ मालिक , हम और हमरे घरवाली आपही को वोट दिए हैं "

सुरेन्द्र जी ने दुबारा पूछा "सच कह रहे हो छोटेलाल या झूठ बोल रहे हो "

"नहीं सरकार हम सच बोल रहे हैं" छोटेलाल बोला .

सुरेन्द्र जी ने पास के पड़ा हुआ डंडा उठाया और लगे मारने छोटेलाल को तब तक और लोग आ गए और बोले "अरे सुरेन्द्र बाबु हार गए तो गरीब को मारोगे क्या "

सुरेन्द्र जी बोले "नहीं हम इसको इसलिए मार रहे हैं क्योंकि ये हमसे झूठ बोल रहा हैं "

लोगोने पूछा "अरे क्या झूठ बोल दिया इसने "

अभी थोडी देर पहले मतगणना केंद्र से आया और यहाँ बैठ कर सोच रहा था "मुझे केवल एक वोट मिला है, तो मेरे बीवी और बच्चोंने किसे वोट दिया है. तभी ये आ गया और बोलने लगा की "इसने और इसकी घरवाली ने मुझे वोट दिया हैं, बस इसी बात पर गुस्सा आ गया " .

20 अप्रैल, 2009

गजबे हो जायेगा

एक जजमान कथा सुन रहे थे . पंडित जी ने कथा शुरू होने के पहले ही जजमान को बता दिया था कि कथा के बीच में उठना मना है . जब पंडित जी को कथा बाचते बहुत समय हो गया तो जजमान ने पंडित जी से पूछा "महाराज अगर कथा के बीच में उठना चाहूँ तो क्या उठ सकता हूँ ? ".

पंडित जी बोले "नहीं , जजमान आप कथा के बीच से उठ कर कहीं नहीं जा सकते ".

जजमान बोले "पंडित जी , अगर कोई आवश्यक कार्य हो तो ?".

पंडित जी बोले "नहीं , जजमान अगर ऐसा करेगे तो कथा फलित नहीं होगी ".

जजमान बोले "पंडित जी , अगर लघुशंका जाना हो तो ?".

पंडित जी बोले "तो जजमान आप धीरे से उठ कर चले जाइये और हाथ-पैर धोके, थोड़ासा जल ऊपर छिड़क कर, वापस आके बैठ जाइये "।

जजमान बोले "महराज, अगर दीर्घ शंका जाना हो तो ? "

पंडित जी बोले "जजमान , तबतो गजबे हो जायेगा ".

जजमान बोले "महराज , गजबे करके तो बैठे हुए है , अब बताइए क्या करे ?"