अब ऐसा नहीं की मन जो कहे आप वही करने लगे , मन बड़ा चंचल होता है उसकी सुने लेकिन निर्णय दिमाग को करने दे ।आप ने महसूस किया होगा जो काम आप मन लगा के करते है उस काम को करने में आप थकान,आलस्य नहीं महसूस करते बल्कि आप बड़े उत्साह और तेजी के साथ उस काम को करना चाहते हैं पर जब कोई काम बिना मन के किया जाता है तो थोडा ही करने के बाद आप आलस्य और थकान महसूस करने लगते हैं और उस काम को और करने की इक्क्षा ख़त्म होने लगती है, हाँ अगर कार्य करते हुए अगर कुछ रोचक हो जाता है तो बात अलग होती है ।
हाँ तो मैं बात कर रहा था "सुनो सब की करो मन की" तो अब आप को एक कहानी सुनाता हूँ शायद ये कहानी आप ने पहले भी सुनी या पढ़ी होगी .
एक बार एक बाप - बेटा खच्चर पे सामान ले के कही दूर जा रहे थे , थोडी दूर जाने पर बाप ने बेटे से कहा की तुम खच्चर पे बैठ जाओ मैं पैदल चलता हूँ । बेटा खच्चर पे बैठ जाता है तभी उधर से कुछ लोग गुजरते है और कहते हैं " कैसा नालायक बेटा है खुद खच्चर पे बैठा है और बाप पैदल चल रहा है "। बेटा उनकी बात सुनता है और खच्चर से उतरकर अपने पिता को बैठा देता है । थोडी दूर जाने पर कुछ और लोग मिलते है और बोलते है "कैसा पिता है खुद आराम से खच्चर पे बैठा है और बेटे को पैदल चला रहा है "। बाप जब ये सुनता है तो वो अपने बेटे को भी खच्चर पे बैठा लेता है . थोडा और आगे जाने पर कुछ लोग मिलते है और कहते है "अरे तुम कैसे इन्सान हो दोनों इस खच्चर पे बैठे हो ,बेचारे खच्चर की जन लोगे क्या ".ऐसा सुन कर दोनों बाप बेटे उतर कर पैदल चलने लगते है . रस्ते में फिर उन्हें एक आदमी मिलता है और बोलता है "कैसे पागल है, खच्चर होते हुए भी पैदल चल रहे हैं ". अब बाप-बेटे का दिमाग ठनक जाता है की कैसे लोग है दुनिया में हर चीज पर अलग - अलग राय देते हैं , किसी भी तरह जीने नही देते . फिर बाप बोलता है बेटा इस संसार में सुनना सबकी पर करना वही जो तुम्हारा दिल और दिमाग कहे .
हमें अक्सर अपने आस-पास कुछ लोग मिल जाते है जो मुफ्त में सलाह देते है पर उनकी सलाह कितनी सही है ये तो हमें ही जाचना होगा . तो इसलिए सुनिए सब की पर करिए अपने मन की . जब आप कोई काम अपने मन से करेगें तो उसकी सफलता और असफलता पर केवल आप का अधिकार होगा .
"उठो , जागो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो तब तक रुको नहीं " विवेकानंद
हाँ तो मैं बात कर रहा था "सुनो सब की करो मन की" तो अब आप को एक कहानी सुनाता हूँ शायद ये कहानी आप ने पहले भी सुनी या पढ़ी होगी .
एक बार एक बाप - बेटा खच्चर पे सामान ले के कही दूर जा रहे थे , थोडी दूर जाने पर बाप ने बेटे से कहा की तुम खच्चर पे बैठ जाओ मैं पैदल चलता हूँ । बेटा खच्चर पे बैठ जाता है तभी उधर से कुछ लोग गुजरते है और कहते हैं " कैसा नालायक बेटा है खुद खच्चर पे बैठा है और बाप पैदल चल रहा है "। बेटा उनकी बात सुनता है और खच्चर से उतरकर अपने पिता को बैठा देता है । थोडी दूर जाने पर कुछ और लोग मिलते है और बोलते है "कैसा पिता है खुद आराम से खच्चर पे बैठा है और बेटे को पैदल चला रहा है "। बाप जब ये सुनता है तो वो अपने बेटे को भी खच्चर पे बैठा लेता है . थोडा और आगे जाने पर कुछ लोग मिलते है और कहते है "अरे तुम कैसे इन्सान हो दोनों इस खच्चर पे बैठे हो ,बेचारे खच्चर की जन लोगे क्या ".ऐसा सुन कर दोनों बाप बेटे उतर कर पैदल चलने लगते है . रस्ते में फिर उन्हें एक आदमी मिलता है और बोलता है "कैसे पागल है, खच्चर होते हुए भी पैदल चल रहे हैं ". अब बाप-बेटे का दिमाग ठनक जाता है की कैसे लोग है दुनिया में हर चीज पर अलग - अलग राय देते हैं , किसी भी तरह जीने नही देते . फिर बाप बोलता है बेटा इस संसार में सुनना सबकी पर करना वही जो तुम्हारा दिल और दिमाग कहे .
हमें अक्सर अपने आस-पास कुछ लोग मिल जाते है जो मुफ्त में सलाह देते है पर उनकी सलाह कितनी सही है ये तो हमें ही जाचना होगा . तो इसलिए सुनिए सब की पर करिए अपने मन की . जब आप कोई काम अपने मन से करेगें तो उसकी सफलता और असफलता पर केवल आप का अधिकार होगा .
"उठो , जागो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो तब तक रुको नहीं " विवेकानंद
बन्धु, मजा आ गया, पिछली तीन पोस्टें पढ़ीं, भारतीय पुलिस की सवारी बहुत अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंठीक कहा आपने...........सबकी सुनो मन की करो
जवाब देंहटाएंसबकी राय एक सी नहीं हो सकती तो क्यूँ न मन की करो, कम से कम अपनी तो करेंगे
अच्छा लेख
अजी बिलकुल सही लिखा आप ने.बहुत सुंदर कहानी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
मजा आ गया आपके ब्लॉग पर आकर.
जवाब देंहटाएंआज आपकी सारी कहानियाँ पढ़ गया
ye kahani satya ghatnaon pe aadhaarit hai is kahani mein alok kr singh ne apna experience nichod ke daala hai...;)
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