03 मार्च, 2009

वो होली की सुबह

होली आने वाली है और मुझे उस आदमी का चेहरा फिर याद आने लगा है । वर्ष २००६ की बात है । मैं उस समय गाजियाबाद में रहता था । दो दिन बाद होली थी, मैं अपने घर जौनपुर जाने की तैयारी कर रहा था पर अचानक मेरे सर में तेज दर्द होने लगा और हल्का - हल्का बुखार भी होने लगा तो मैंने घर पर फ़ोन करके माता जी से बोला दिया की "तबियत ठीक नहीं है इसलिए कल सुबह यहाँ से चलूँगा "। जब बुखार बहुत तेज हो गया तो मैंने अपनी बुआ जी (जो गाजियाबाद में ही रहती थी ) को फ़ोन कर के बताया की मेरी तबियत ठीक नहीं है और अपने एक मित्र को मैंने अपने पास बुला लिया ।

मेरे मित्र ने आने के बाद मुझसे कहा की अगर तबियत ठीक नहीं है तो चलो डॉक्टर को दिखा लो । मैंने कहा "मेरे पास हिम्मत नहीं है की डॉक्टर के पास जाऊँ , तुम जाके दवा ले आओ "। रात को बुआ जी आयीं और उन्होंने बुखार उतारने के लिए ठंडे पानी की पट्टिया मेरे सर पर रखीं और बोला की अगर ज्यादा दिक्कत हो तो फ़ोन करना हम आ जायेगे ।

सुबह बुआ जी फिर आयीं मुझे देखने के लिए पर मुझे कुछ पता नहीं था , क्योंकि मैं बेहोश हो चुका था । इस बात का पता मेरे मित्र को भी नहीं था, उसे लगा की मैं सो रहा हूँ । बुआ जी ने पास के ही एक निजी चिकित्सालय में मुझे भर्ती करवा दिया पर कई घंटे बीत जाने पर जब मुझे होश नहीं आया और मेरे रक्त का दबाव कम होता जा रहा था , तो चिकित्सालय के मालिक ने एक वरिष्ठ चिकित्सक को बुला कर मुझे दिखाया । चिकित्सक ने देखा की मेरे शरीर पर कुछ दाग के निशान आ गए हैं तो उन्होंने बताया की ये मेनिन्गोक्समिया नामक बीमारी हो सकती है , यह बीमारी इस समय दिल्ली और आस पास के इलाको में फैली हुई है ।चिकित्सक के परामर्श पर मुझे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया ।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में मेरा इलाज शुरू हो गया, रात होते - होते मुझे होश आ गया । होश आने पर मैंने अपने आप को अस्पताल के एक कमरे में पाया ,कमरे में केवल तीन लोग थे । मैं बीच में था, मेरे दायीं तरफ एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था जो बेहोश था और बायीं और एक १०-१२ साल की बच्ची थी । कमरे में जो भी नर्स या डाक्टर आते मुहं पर हरे रंग की पट्टी बांध कर आते , मैंने नर्स से पूछा की मुझे क्या हुआ है और मेरे घर वाले कहा हैं ? नर्स ने बताया की मुझे मेनिन्गोक्समिया बीमारी है और यह बीमारी छूने , बोलने और किसी भी तरह सम्पर्क में आने पर दुसरे व्यक्ति को हो सकती है इसलिए आप के पास किसी को आने की अनुमति नहीं है । हाँ अगर कोई मिलना चाहे तो एंटीबैटिक दवा खा के आप से थोडी देर के लिए मिल सकता है। मैंने फिर पूछा की "मुझे यहाँ कब तक रहना होगा?" तो उन्होंने बताया की आप की टेस्ट रिपोर्ट कल शाम को आएगी उसके बाद ही कुछ पता चलेगा। उसने बताया की इस बीमारी में अगर २४ घंटे के अन्दर सही इलाज शुरू न हुआ तो शरीर के सारे अंग ख़राब होने लगते है और तीन दिन के अन्दर इन्सान की मौत हो जाती है ।

सुबह होने पर देखा माता जी और पिता जी घर से आ गए थे , बुआ जी ने बताया की "वो और मेरे कुछ मित्र कल से यही पर हैं लेकिन तुम्हारे पास किसी का ज्यादा देर तक रहना मना है इसलिए वो बाहर थे" । तभी मेरे बगल के लोगों से मिलाने उनके घर वाले आ गए थे । वह आदमी जो मेरे दायी ओर था उसे अब थोडा होश आ गया था और वह घर जाने की बात कर रहा था , वह कह रहा था की "अगले महीने उसकी बेटी की शादी है उसे बहुत काम है"। उसकी पत्नी उन्हें समझा रही थी पर वह कुछ सुनने को तैयार नहीं था । वह आदमी बात करते - करते चिल्लाने लगता था और फिर बेहोश हो जाता था ।

उसकी पत्नी ने बताया की वो मेरठ के रहने वाले है , उसकी दो लड़कियां है अगले महीने बड़ी की शादी है , तीन दिन पहले उसके पति को बुखार आया था तो वही के डॉक्टर से इलाज करवा रहे थे पर कल शाम को जब डाक्टर ने जवाब दे दिया तो यहाँ ले के आये हैं ।

शाम को मेरी रिपोर्ट आ गयी थी , डाक्टर ने बताया की कल सुबह मुझे सामान्य वार्ड में भेज दिया जायेगा क्योंकि मेरा इलाज सही समय पर शुरू हो गया इसलिए रक्त और त्वचा को छोड़ कर शरीर के किसी अंग को नुकसान नहीं हुआ है।

रात के करीब १० बज रहे थे , अचानक मेरे बगल लेटा आदमी उठ जाता है और मुझे बहुत काम करना है कह कर बाहर भागने लगता है , अस्पताल के कर्मचारी उसे पकड़ के वापस लाते हैं । उस आदमी को वो लोग चारपाई से बांध देते है जिससे वो दुबारा न भाग पाए । डाक्टर आके उसे देखते है और नर्स से कुछ सुई लगाने को कहते है । नर्स के सुई लगाने पर वह आदमीं फिर शांत हो जाता है ।

रात के करीब २ बज रहे होगे तभी एक तेज चिल्लाने की आवाज आती है , मैं उठ के देखता हूँ तो उस आदमी ने रस्सी तोड़ दी है और उठ के बैठ गया है , मैं सोचता हूँ की आखिर इसने ये रस्सी कैसे तोड़ दी , मैं उससे बात करने की कोशिश करता हूँ पर तभी वो वापस लेट जाता है । डाक्टर और नर्स आते हैं और उसको देखने के बाद डाक्टर बोलते है की "इसके घर वालो को बुला दो ये मर चुका है" । उसकी पत्नी आती है और अपने पति की लाश देख कर रोना शुरू कर देती है , तभी अस्पताल के कर्मचारी आते है और बोलते हैं की अभी ३ बज रहे हैं आप इनको लेके अभी निकल जाओ वरना सुबह होने पर होली होने के कारण कोई गाड़ी मेरठ नहीं जा पायेगी । मेरे आँखों के सामने उस आदमी को सफ़ेद कपडे में सिल के एक बड़े प्लास्टिक बैग में डालके बाहर लेके चले जाते हैं ।

मुझे अपनी शंका का समाधान मिल जाता है की वो रस्सी उसने नहीं तोड़ी बल्कि वो उसकी प्राण वायु थी जो उसे छोड़ के जा रही थी । होली आने वाली है और मुझे उस आदमी का चेहरा फिर याद आने लगा है।

13 टिप्‍पणियां:

  1. ओह बहुत भयंकर बात सुनाई। आपकी बुआजी ने सही समय पर सही निर्णय लिया, अन्यथा न जाने क्या हो जाता।

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  2. ऎसी घटनाएं भुलाये नहीं भूलती। जीवन भर याद रहती हैं।

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  3. पढ़ते पढ़ते रौंगटे खड़े हो गये और आपने तो देखा है. कैसे भूल सकते हैं.

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  4. सच में कुछ बाते भुलाये नहीं भूलती है ..सही इलाज और सही वक़्त सब अच्छा कर देता है .

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  5. कैसे भूल सकते वो समय जब कोई आप के सामने मर रहा हो और आप लाचार हो .

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  6. बुआ के सही समय पर इलाज करवाने की वजह से आप की भी जान बच गयी , जिन्दगी का क्या भरोसा कब साथ छोड़ दे .

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  7. बहुत मुश्किल है इन घटनाओं की यादे भुला देना.

    रामराम.

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  8. बहुत मार्मिक संस्मरण है। मौत के मुहँ से बचते हुए मौत के आगोश में चले जाने का नजारा। सचमुच कितना भयानक रहा होगा।

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  9. बाप रे.... आप ने तो रोंगटे ही खडे कर दिये, ओर बुआ जी का धन्यवाद करो जिन्होने सही मोके पर पहुच कर बचा लिया, वरना यह बात हमे केसे पता चलती.......
    अब जब भी होली आती होगी तो.....

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  10. un dino ki yaad mat dila, rongate khade ho jate hai. chal rat gai bat gai. jindgi main bure din hote hai to acche din bhi atte hai. Wait and Wach

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  11. आपका संस्मरण पढ़कर सिहर गया

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