सुरेन्द्र जी ने रायबरेली से आने के बाद अपना कमरा बदल लिया, जहाँ पर एक सामूहिक स्नानागार और शौचालय था । कमरे में सब कुछ तो ठीक था पर सामान रखने के लिए कोई अलमारी नहीं थी, सुरेन्द्र जी अपना तेल, साबुन इत्यादि सामान खिड़की के ऊपर रखते थे । एक दिन सुबह उन्होंने अपना साबुन उठाया तो वो गिला था उन्हें लगा शायद कही से पानी गिर गया होगा, पर अगले दिन जब साबुन फिर गिला था, तो उन्हें शक हुआ की हो न हो कोई मेरा साबुन इस्तेमाल कर रहा है ।
उन्होंने ने सबसे पूछा "का हो केहू हमार साबुन लगावत हो का"। सबने मना कर दिया। अगले दिन वो सुबह ४ बजे उठ गए और देखने लगे की आज देखता कौन मेरा साबुन ले के जाता है , तभी उन्हें एक परछाई दिखाई देती है जो उनका साबुन ले के जा रही है, थोडी देर बाद उसने साबुन लाकर वहीँ रख दिया, लेकिन वो आदमी बगल वाले कमरे गया ये बात सुरेन्द्र जी को पता चल गयी।
सुबह उन्होंने बगल के कमरे में रहने वाले राम आसरे से पूछा "का हो तू हमार साबुन लगावत हो"। राम आसरे बोले "अरे सुरेन्दर भईया, हम त बिना साबुन के नहाईला , हम तोहार साबुन काहे लगाइब"।
सुरेन्द्र जी ने अब रंगे हाथो चोर को पकड़ने की सोची। उन्होंने एक नया साबुन लाकर वहीँ पर रख दिया। अगले दिन फिर कोई साबुन लेके गया, पर बहुत देर बाद उसने साबुन लाके वहां पर रख दिया। सुरेन्द्र जी ने एक दो लोगों को इकठा किया और हर कमरे के लोगो से जाकर मिलने लगे , अंतिम कमरा राम आसरे का था पर वो दरवाजा ही नहीं खोल रहा था । जब उन्होंने ने धमकी दी दरवाजा नहीं खोलोगे तो तोड़ देंगे तो , राम आसरे ने दरवाजा खोल दिया ।
राम आसरे को देखते सबकी हंसी छुट गयी , रामआसरे के सर, हाथ, भौह और पलकों के बाल गायब थे . हुआ ये था कि सुरेन्द्र जी ने बालसफा साबुन लाकर रख दिया था। सुरेन्द्र जी ने फिर कहा "जब हम कल तोहसे पूछे की हमार साबुन लगावत हो, त तू मना कई दिहो, इही खातिन हम इ बालसफा साबुन ले के आ ये रहे की, अब जे साबुन लगावत होए रँगे हाथे पकडा जाये। कल तू सच बोल दिहे होता त, का हम तोहके गोली थोड़े मार देते , पर तू झूठ बोले उही का इ सजा बा की अब तब महिना भर केहू के आपन चेहरा न दिखैबो और जिनगी भर चोरी कइके कौनो काम नहीं करबो ।"
उसके बाद से सुरेन्द्र जी का कोई समान बिना पूछे किसी ने कभी नहीं लिया , इतना खतरनाक सबक जो उन्होंने दिया था ।
उन्होंने ने सबसे पूछा "का हो केहू हमार साबुन लगावत हो का"। सबने मना कर दिया। अगले दिन वो सुबह ४ बजे उठ गए और देखने लगे की आज देखता कौन मेरा साबुन ले के जाता है , तभी उन्हें एक परछाई दिखाई देती है जो उनका साबुन ले के जा रही है, थोडी देर बाद उसने साबुन लाकर वहीँ रख दिया, लेकिन वो आदमी बगल वाले कमरे गया ये बात सुरेन्द्र जी को पता चल गयी।
सुबह उन्होंने बगल के कमरे में रहने वाले राम आसरे से पूछा "का हो तू हमार साबुन लगावत हो"। राम आसरे बोले "अरे सुरेन्दर भईया, हम त बिना साबुन के नहाईला , हम तोहार साबुन काहे लगाइब"।
सुरेन्द्र जी ने अब रंगे हाथो चोर को पकड़ने की सोची। उन्होंने एक नया साबुन लाकर वहीँ पर रख दिया। अगले दिन फिर कोई साबुन लेके गया, पर बहुत देर बाद उसने साबुन लाके वहां पर रख दिया। सुरेन्द्र जी ने एक दो लोगों को इकठा किया और हर कमरे के लोगो से जाकर मिलने लगे , अंतिम कमरा राम आसरे का था पर वो दरवाजा ही नहीं खोल रहा था । जब उन्होंने ने धमकी दी दरवाजा नहीं खोलोगे तो तोड़ देंगे तो , राम आसरे ने दरवाजा खोल दिया ।
राम आसरे को देखते सबकी हंसी छुट गयी , रामआसरे के सर, हाथ, भौह और पलकों के बाल गायब थे . हुआ ये था कि सुरेन्द्र जी ने बालसफा साबुन लाकर रख दिया था। सुरेन्द्र जी ने फिर कहा "जब हम कल तोहसे पूछे की हमार साबुन लगावत हो, त तू मना कई दिहो, इही खातिन हम इ बालसफा साबुन ले के आ ये रहे की, अब जे साबुन लगावत होए रँगे हाथे पकडा जाये। कल तू सच बोल दिहे होता त, का हम तोहके गोली थोड़े मार देते , पर तू झूठ बोले उही का इ सजा बा की अब तब महिना भर केहू के आपन चेहरा न दिखैबो और जिनगी भर चोरी कइके कौनो काम नहीं करबो ।"
उसके बाद से सुरेन्द्र जी का कोई समान बिना पूछे किसी ने कभी नहीं लिया , इतना खतरनाक सबक जो उन्होंने दिया था ।
अरे आलोक भईया येतना ना हसावा करा कि पेटय पिराय लगय । वइसे ई ठीक सबक रहा अब दुबारा तो न चुरइहै ना साबुन । बहुत मस्त लिखत बाटया । अच्छा लागत है पढ़के ।
जवाब देंहटाएंkya baat hai mitra! surendra ji to chhaa gaye.
जवाब देंहटाएंसुरेन्द्र जी तो बहुत मजेदार आदमी मालूम पड़ते है .
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया .
आलोक जी बहुत अच्छा लिखा है आपने , संवादों को उन्ही की भाषा में लिख कर आपने लेख को और रोचक बना दिया है .
जवाब देंहटाएंaaj allhabad se raibarely aur ye lekh padha , bahut maza aaya , haste haste pet me dard ho gaya .
जवाब देंहटाएंGoood story.Sabak jidgi bhar yaad rahega.
जवाब देंहटाएंmaza aa gaya aapki ye rachana aur pichli rachana padh kar,
जवाब देंहटाएंaise hi likhate rahiye.
बहुत अच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएंसुरेन्द्र जी भी चाचा चौधरी या संता बंता जैसे फेमस होने वाले हैं
जवाब देंहटाएंवाह भाई राम आसरे जी तो बेचारे..... लेकिन अब राम आसरे की दो पीढीयां तो साबून नही चुरायेगी. बहुत मजा आया आप का यह साबऊन वाला किस्सा पढ कर.
जवाब देंहटाएंऎसॆ ही हमारे दोस्त रोजाना हमारे पीने का जुस की बोतल चुरा कर पुरी गटक जाये, हम ने कई बार मना किया भाई अगर आप ने पीनी हो तो चोरी मत करो, हम तुम्हारे लिये नयी ला देते है, लेकिन भईया वो अपने आप को हमारा उस्ताद मानत रहित... हमार समझान का कोई असर नही होत, फ़िर एक दिन हम ने एक साफ़ बोतल मे खुब सारी लाल तेज मिर्च डाल दी, उस के ऊपर खुब सारा भेंस का पेशाब डाल दिया, ओर डक्कन सही से बन्द कर के फ़्रिज मे बोतल रख दी, ओर भईया बाकी सभी लोगो को बता दिय कि आज देखना चोर केसे पकडा जाता है, उस समय कवारे थे, ओर यार दोस्तो के संग रहते थे, करीब आधा घंटे बाद किचन से बहुत जोर से आवाज आई सभी हेरन हो कर देखने लगे कि क्या हुआ? तो हम ने कहा कि साला चोर पकडा गया, ओर भईया दो दिन तक भाई ऊपर से ओर सुबह नीचे से सी सी करते रहे...
फ़िर कभी चोरी का जुस नही पिया उन साहब ने.
बिल्कुल रामाअसरे का इलाज तो कोई सुरेंद्र जी जैसे ही कर सकते हैं:) बहुत बढिया.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत दिनों बाद इतना सुंदर हास्य पड़ने को मिला .
जवाब देंहटाएंजरी रखे .....सुरेंदर भाई की जे हो.
बालसफा साबुन! वाह!
जवाब देंहटाएंchhaa gaye ...
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