04 मार्च, 2009

ब्लॉग सार

* क्यों व्यर्थ लेख की चिंता करते हो ? टिप्पणी न मिलने से डरते हो ? कौन तुम्हारी टिप्पणियाँ छीन सकता सकता है ? टिप्पणी पाने के लिए टिप्पणियाँ करते हो, टिप्पणियाँ न पैदा होती है न मरती है !

* जो लिखा अच्छा लिखा, जो लिखोगे वो अच्छा ही लिखोगे , जो टिप्पणियाँ मिलेगी, वो भी अच्छी होगी ! तुम पुराने लेख का पशचाताप न करो , भविष्य के लेख की चिंता न करो, वर्तमान पढ़ा जा रहा है !

* तुम्हारा क्या गया ,जो तुम दुखी होते हो ! तुम क्या नया लाए थे ,जो लोगो ने नहीं पढ़ा , तुमने क्या लिखा था , जो टिप्पणियों का अभाव हो गया ?

* तुम केवल ब्लॉग खाता लेकर आये ! जो लिया, इसी (ब्लॉग ) से लिया ! जो दिया इसी को दिया !

* बिना लेख के आए , और बिना टिप्पणियों के चले गए !

* जो लेख आज तुम्हारा है, कल किसी और का था ! परसों किसी और का होगा ! तुम इसे अपना समझ कर टिप्पणियाँ ले रहे हो ! बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:ख का कारण है।

* परिवर्तन ही ब्लॉग का नियम है ! एक लेख में तुम सैकडो टिप्पणियों के स्वामी बन जाते हो , दुसरे लेख में तुम टिप्पणी विहीन हो जाते हो ! मेरा लेख ,उसका लेख ,मन से मिटा दो ,फिर ब्लॉग जगत तुम्हारा है , तुम ब्लॉग जगत के हो !

हे पार्थ
जब-जब अच्छे चिट्ठाकार आयेगे तब-तब मैं उनके लेख पढ़ कर उनपर टिप्पणियाँ करूँगा ।
समय आने पर मैंने उन चिट्ठाकारों का प्रोत्साहन और अनुसरण भी करूँगा .

विस्तृत गीता ज्ञान स्वामी समीरानन्द जी द्वारा तीन वर्ष पहले लिखा गया है उसे पढने के लिए यहाँ चटका लगाये .

29 टिप्‍पणियां:

  1. हे पार्थ
    जब-जब अच्छे चिट्ठाकार आयेगे तब-तब मैं उनके लेख पढ़ कर उनपर टिप्पणियाँ करूँगा ।
    समय आने पर मैं उन चिट्ठाकारों का प्रोत्साहन और अनुसरण भी करूँगा .
    रचनात्मक ब्लाग शब्दकार को रचना प्रेषित कर सहयोग करें।
    रायटोक्रेट कुमारेन्द्र

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  2. आलोक जी,आपकी पढ कर तो हंसी रुक ही नही रही,

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  3. जय हो, स्वामी आलोकानन्द की!!

    कभी हमने भी चिट्ठाकारों को गीता सार बताया था ३ साल पहले, देखियेगा:

    http://udantashtari.blogspot.com/2006/12/blog-post_25.html

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  4. हे पार्थ, आज मेरा संशय दूर हुआ. और मेरी आत्मा का बोझ उतर गया.

    रामराम.

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  5. आत्मा आज बिल्कुल नहाई धोई सी लग रही है.

    रामराम.

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  6. बहुत सुंदर पार्थ.........!!!!!
    एसे ही प्रवचन देते रहो.

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  7. "एक लेख में तुम सैकडो टिप्पणियों के स्वामी बन जाते हो , दुसरे लेख में तुम टिप्पणी विहीन हो जाते हो "
    इसीलिए आज तक हमने अपना कोई लेख नहीं लिखा .

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  8. जय हो आपकी भी और समीर भाई की भी..........
    सुंदर गीता ज्ञान,

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  9. समीरान्दन्द-आलोकानन्द पाटन के बीच में साबित बचा न पार्थ कोय:)

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  10. गीता ज्ञान हर माहौल में एडजस्ट हो जाता है...अच्छा लगा पढ़ के.

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  11. सुन्दर ब्लोगिया गीता ज्ञान ..जय हो

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  12. " ha ha ha ha haha ha ha ha ha really very interesting to read.."

    regards

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  13. जय गुरुदेव
    बहुत बढ़िया ब्लॉग ज्ञान दिया .

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  14. भई वाह्! आपके व्यक्तित्व का आज ये एक नया पहलू दृ्ष्टिगोचर हुआ है....आपके ब्लाग गीता के पाठन से तो मन पूर्णत:आह्लादित हो उठा है.........अति उत्तम

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  15. जय हो टिप्पणी सार की . बढ़िया आलेख व्यंग्यात्मक बधाई .

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  16. प्राणम महात्मा जी आप के चरण कहा है जी. अभी तक कहां छिपे बेठे रहे, अब जल्दी से इस दुनिया का कष्ट दुर करो.
    धन्यवाद

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  17. ज्ञान बॉटने से ज्ञान मे बढोतरी होती है। लिखते रहे हो टीपणीया लेते जाऔ, और भाई देते भी जाओ। कुछ समझे के नही ?

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  18. गीता ज्ञान किसी भी रूप में हो उसकी बात ही कुछ और होती है

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  19. वाह भई वाह, मुझे पता नहीं था कि आप के पास सार थोक में रखा है. पहले पता होता तो मैं पाइरेसी कर छाप देता और अट्ठाईस टिप्पणी पा जाता.

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नमस्कार , आपकी टिप्पणी मेरे प्रयास को सार्थक बनाती हैं .